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________________ ३७६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा ही पर द्वार और चौक की सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े और सुदृढ़ रक्षा-कक्ष बने हुए हैं। दरवाजों पर नोकदार मेहराब बनाने के लिए उन्हें दलदार लकड़ी से ढँक दिया गया है और ऊपर लोहे के पत्तरों से मंढ दिया है, जो मौसम के प्रभाव से पूरी तरह काले पड़ गए हैं। परन्तु इस दुर्ग-द्वार में जो सब से अधिक श्राकर्षक बात मुझे लगी वह यह थी कि रक्षा कक्ष के प्रवेशद्वार से बाहर की प्रोर देखती हुई चूने की तलवारें और ढालें काफी उभरी हुई आकृति में ऐसे मुख्य स्थान पर बनाई गई थीं जहाँ दर्शक की दृष्टि पड़े बिना न रहे। ऐसी स्थिति में किसी 'आदर्श वाक्य' की श्रावश्यकता नहीं होती क्योंकि ये उपकरण अपना विषय प्राप ही स्पष्ट कर देते हैं । परन्तु जिन लोगों ने रूस के वाराञ्जियन (Varangian) शासकों का प्राचीन इतिहास पढ़ा है उन्हें रूरिक ( Rurik)' के पुत्र द्वारा बाइजेण्टिअम (Byzantium) के दरवाजे पर लटकाई हुई ऐसी ढाल की खूंटियों का अवश्य ध्यान आ जाएगा जब कि वह अस्सी हजार सेना लेकर बोरिस्थिनीज ' ( Borysthenes ) से गुजरा था और ग्राठवीं शताब्दी में ही उस नगर पर, जो आज तक भी उनका नहीं है, ऐसे ही शब्द जड़ दिए थे । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वाराञ्जियन (Varangian) नारमन (Norman जाति के थे और उस समय तक भी अर्द्ध एशियाई थे; और हम इतना और जोड़ देते हैं कि जब वाराजियन सैनिकों ने युद्ध-सन्धि को निबाहने के लिए 'अपने शस्त्रों की शपथ खाकर' सम्पुष्टि की थी तो हम यह कल्पना कर सकते हैं कि राजपूत थे 1 3 वे इन रक्षा-प्राकारों को छोड़ कर हम ठोस चट्टान में काट कर बनाई हुई 1 रूरिक मूलतः स्केण्डेनेविया का रहने वाला था । उसने उत्तर पश्चिमी रूस में अपना साम्राज्य स्थापित किया था ( ८५० ई० हवीं शती) । उसके उत्तराधिकारी और पुत्र इगर Igor के संरक्षक ड्यूक प्रोलेग (Duke Oleg) ने श्राधुनिक रूस की नींव रखी थी । कुस्तुन्तुनिया के लोग इनके सिपाहियों के युद्धकौशल की बहुत प्रशंसा करते थे और इनको वाराजियन कहते थे —The Outline of History, H. G. Wells; p. 658 २ बॉस्फोरस नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन ग्रीक नगर जो वर्तमान कुस्तुन्तुनिया की पूर्वतम सात पहाड़ियों पर स्थित था । कहते हैं कि यह नगर ई० पू० ६६७ में निर्मित हुआ था । 3 योरप की महानदी जिसका मूल नाम Dnieper ( नीपियर ) था । ग्रीकों ने इसको बोरिस्थिनीज़ नाम दिया । यह वाल्डाई की पहाड़ियों से निकलती है जो सुप्रसिद्ध वॉल्गा के उद्गम से अधिक दूर नहीं है । यह नदी लगभग ११ हजार मील लम्बी है और श्यामसमुद्र ( Black Sea ) में मिल जाती है । - E. B. Vol. VII, p. 306 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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