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पश्चिमी भारत की यात्रा - बड़ौदा- जून...। मुझे इस विश्राम-स्थल पर पहुंच कर बहुत प्रसन्नता हुई। यहाँ के रेजीडैण्ट मिस्टर विलियम्स की भ्रातृत्वपूर्ण कृपाओं ने इसे मेरे लिए अत्यन्त आराम का स्थान बना दिया था। बम्बई जाने वाली सड़कें (वर्षा के कारण) बन्द थीं और मेरे स्वास्थ्य की दशा ने मुझे उनके मित्रतापूर्ण तों को मानने के लिए सहज ही विवश कर लिया कि वर्षा का वह समय मुझे उन्हीं की छत के नीचे बिताना चाहिए। इस बीच में, मैंने एक मार्ग सोच निकाला; क्योंकि नव-वर्षारम्भ तक मुझे (जहाज में) जगह मिलने वाली नहीं थी इसलिए मैंने अपनी इच्छापूर्ति की बढ़ती हई सम्भावनाओं की खुशी में सोचा कि सौराष्ट्र के अन्तरंग में हो कर निकला जाय । मेरे मित्र ने भी इस योजना को प्रोत्साहन दिया और यह भी प्रतिज्ञा की कि मेरे दृष्टिकोण को पूरा करने में सहायक हो कर वे भी मेरे साथ चलेंगे। बीच का समय मैंने चढ़े हुए काम को पूरा करने में बिताया, जैसे-बहुत से हस्तलिखित ग्रन्थों एवं शिलालेखों की प्रतिलिपियाँ करना, जिनका मुझे राजपूत जातियों के चित्रण में समावेश करना था-सारांश यह है कि प्रतिदिन मैं अपने भण्डार की कुछ न कुछ वृद्धि करता ही रहा।
बड़ौदा यद्यपि बहुत पुराना नगर है परन्तु वहाँ अन्वेषण के योग्य कोई वस्तु नहीं है। तालाब में मुझे एक गिलालेख मिला जो प्राचीन कुटिल जैन लिपि में लिखा हुआ था परन्तु उसके अज्ञानी स्वामी ने उसको मिटा दिया था। बड़ौदा का प्राचीन नाम चन्दनावती है क्योंकि इसे दोर (Dor) जातीय राजपूत राजा चन्दन ने बसाया था।' उपाख्यानों में उसका वर्णन खूब आता है। उसकी सुप्रसिद्ध रानी मुलीग्री (Muleagri) [मलयागिरि ?] से दो कन्याएं हुई जिनके नाम सौकरी (Socri) और नीला थे ।' इनकी कथाओं में ले जा
' Provincial Gazetteers of India- Baroda State - 1908 ' मूल कथा में राजा चन्दन और उसकी रानी मलयागिरि के राजकुमारों के नाम सायर और नीर लिखे हैं।
बड़ोदा का पूर्व नाम चन्दनावती और वीरावती नगरी से बदल कर कब 'वटपद्र' हो कर कालान्तर में वडोदरा और तदनु बड़ोदा या बड़ौदा हो गया इसका ठीक-ठीक इतिहास नहीं मिलता।
आजकल प्रायः गुजरात के निवासी इस नगर को 'बड़ोदरा' कह कर बोलते हैं, जो संस्कृत 'वटोदर' शब्द से निकटतम है। इसका यह नाम इसलिए पड़ा होगा कि पहले जब यह एक छोटे-से गाँव के रूप में था तो इसके चारों ओर घने वट-वृक्ष लगे हुए थे; अतः वटों के उदर अथवा बीच में बसा हुआ ग्राम 'वटोदर' हुा । वैसे, अब भी नगर के आसपास में बहुत बड़ी संख्या में वट-वृक्ष विद्यमान हैं । वडोदरा के साथ-साथ इसको वीरावती नगरी अथवा वीर-क्षेत्र भी कहते हैं । गुजरात के कवि प्रेमानन्द (१७ वीं शताब्दी) ने अपने काव्य में इन नामों का प्रयोग किया है।
(चालू)
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