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पश्चिमी भारत की यात्रा सरोवर के बीच में खड़ा है परन्तु इसकी गहराई अब नाम मात्र की है। यहीं पर एक विशाल जलाशय (बावड़ी) के भी अवशेष हैं, जिसकी सामग्री से आधुनिक पट्टण' में एक नई बावड़ी बन गई है। इसी के साथ एक छोटी बावड़ी भी है, जो 'स्याही का कुण्ड' कहलाती है। लोगों का कहना है कि इसमें, हेमाचार्य के शिष्य उनके सूत्रों को लिखते समय अपनी कलम डुबोते थे।
काली की छतरियों से कोई डेढ़ सौ गज की दूरी पर एक विशाल दरवाजे की मेहराब (तोरण) का ढांचा खड़ा है। यदि इस शोभमान अवशेष से अनुमान लगाया जाय कि अणहिल का नगर 'वाडा' कैसा था तो स्थापत्य-सम्बन्धी एक बड़ी गुत्थी तुरन्त ही सुलझ जाती है, क्योंकि सारसेनिक (Saracenic) कहलाने वाली मेहराबों के जितने ढाँचे मैंने देखे हैं उनमें यह सबसे अधिक सुन्दर है, और यदि हम यह प्रमाणित कर सकें कि इसका उद्गम हिन्दू है तो हमें इसमें अलहम्बा की मेहराबों एवं गॉथिक कहलाने वाली उस बहुविध नुकोली शैली के मूल रूप का पता चल जायगा, जिससे योरप भरा पड़ा है। यदि वास्तव में यह दरवाज़ा वंशराज द्वारा ७४६ ई० में बनवाए हुए परकोटे का ही भाग है तो यह ग्रेनाड़ा-राज्य में हारूं द्वारा बनवाए हुए सर्वश्रेष्ठ 'अलहम्बा भवन' के निर्माण-समय के आसपास का बना हुआ होना चाहिए। मैं अपना.यह मन्तव्य पहले ही प्रकट कर चुका हूँ कि यद्यपि चावड़ा राजा ने इन्हीं दिनों अपना वंश (राज्य) स्थापित कर लिया था परन्तु यह नितान्त असम्भव है कि इस नगर का इतना विस्तार और गौरव-प्रसार उसी के समय में हो गया होगा। हम यह अनुमान कर सकते हैं कि जब वंशराज को, उसके कुटुम्बियों की समुद्री-लुटारूपन की आदतों के कारण, देव-बन्दर से निकाल दिया गया था तो वह किसी दूसरी राजधानी में जा बसा अथवा किसी अधिक प्राचीन राजवंश का उत्तराधिकारी बन गया। हम जानते हैं कि बगदाद के खलीफों को, जिन्होंने स्थलीय महान् विजय प्राप्त करने के साथ-साथ समुद्री साम्राज्य भी काफी बढा लिया था, भारत के साथ लम्बे व्यापारिक सम्बन्धों के कारण महान समद्धि विरासत के रूप में मिली थी और वे जिस देश पर विजय करके उसे अधिकृत कर लेते थे वहाँ की मूल्यवान् कला और विज्ञान का तुरन्त
१ यहां पर दिया हुमा छापा श्री प्रार्थर मैलट (Mr. Arthur Malet) के रेखा-चित्र का है जिसका विवरण यों दिया है--पट्टण के प्राचीन किले की बावड़ी के खंडहर । सीढ़ियां और सुरंगें गिर गई है; केवल दीवार का एक हिस्सा बचा है, जो सुन्दर बना हुमा है; मुसलमान संभवतः इसके पत्थर किसी हिन्दू-मन्दिर से लाए थे क्योंकि इन पर मूर्तियां भी बनी हुई है।
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