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पश्चिमी भारत की यात्रा.
समान रूप से गाए हैं। सप्त-धातु (हफ्त धात) अणहिलवाड़ा में पाया जाता था, परन्तु विदेशी भूरे रंग के टिन की अपेक्षा देशी टिन तो घर के पास ही प्राप्त किया जा सकता था क्योंकि मेवाड़ में जवन (Jawan) की खानों से पता चलता है कि उनमें खुदाई का काम बहुत पहले से प्रारम्भ हो चुका था और यहां की पहाड़ियां शीशा, तांबा, टिन और सुरमें (antimony) से भरी पड़ी हैं। सम्माननीय बीड (Vencrable Bede)' के पास कालीमिर्च, दालचीनी और लोहबान रहता था; डॉक्टर विसेन्ट का प्रश्न है कि "उस समय, ७३५ ई० में ऐसे पदार्थ ब्रिटेन में एक पादरी की कोठरी तक कैसे पहुंच जाते थे ?"
एरिअन ने बहुमूल्य सुगन्धित द्रव्यों और अंगरागों का वर्णन किया है और 'चरित्र' में लिखा है कि अणहिलवाड़ा में ऐसी वस्तुओं का एक अलग ही बाजार था। जटामांसी या बालछड़, पीपल, लोहबान और गोमेदक' के विषय में भी एरियन ने लिखा है कि ये वस्तुएं मीनागढ़ (Minagara) से भेजी जाती थीं 'जहां पर' उसका कहना है कि 'एक पार्थिअन अधिकारी रहता था, जो गुजरात से कर वसूल किया करता था।' अन्तिम (गोमेदक) पदार्थ के अतिरिक्त ये सब वस्तुएं तिब्बत में पैदा होती हैं और इस चक्करदार रास्ते से बचने के लिए सिन्धु नदी ही सीधा व्यापारिक मार्ग था। डी' गुइग्नीस् (De Guignes) ने दूसरा शताब्दी में इण्डोसीथिक (Indo-Scythic) विस्फोट के बारे में और कॉसमस (Cosmas) ने छठी शताब्दी में हूण अाक्रमण के विषय में लिखा है;
, गोमेवक पत्थर का पूर्वीय देशों में लाक्षणिक मूल्य है और विशेषतः ताबीजों में इसका
प्रयोग अच्छा समझा जाता है। इस पत्थर की सुमरनी [माला भी बहुत प्रभावशील
मानी जाती है। २ बॅनरेबुल बीड का जन्म ६७३ ई. में मांकवियर माउथ (Monkwearmouth) में हुआ था। वह अपने समय का अंग्रेजों में सबसे बड़ा विद्वान् और ख्यातिप्राप्त लेखक माना जाता था। उसे 'आंग्ल इतिहास का पिता' भी कहा जाता है। उसने सब मिला कर ४० ग्रन्थ लिखे थे, जिनमें २५ बाइबिल पर आधारित थे; शेष इतिहास भादि अन्य विषयों पर । उसकी मृत्यु ७३५ ई० में हुई।-E. B.Vol. III. p. 480-81 3 फ्रेञ्च प्राच्य विद्याविद्, "Historic Generale des HUNS" का लेखक । ४ छठी शताब्दी के इस लेखक की ग्रीक पुस्तक 'AChristian Topography Embra
cing the Whole World' के अतिरिक्त उसके विषय में कोई सूचना प्राप्त नहीं है। इस पुस्तक के सब मिला कर १२ अध्याय हैं । पहले पांच तो ५३५ ई. के तुरन्त बाद ही लिखे गए प्रतीत होते हैं। बाद के सात मागे चल कर लिखे गए । लेखक पहले व्यापारी था, बाद में पादरी बन गया था। व्यापारी होने के नाते उसने लाल समुद्र, हिन्द महा
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