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________________ २१४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा कहा "लहराते हुए सागर के समान चालुक्य बढ़ा आ रहा है। लाखों पैदल और हज़ारों हाथियों के चलते ही समुद्र की मर्यादा भी भंग हो गई।" .. __ यहाँ चौहान की सेना का वर्णन करने का मेरा अभिप्राय नहीं है। कन्हराय उसका प्रधान सेनापति था, जो अपनी पूर्व पराजय का बदला लेने के लिए भी उत्सुक था। पिछले दिनों, उसने शाहबुद्दीन को परास्त किया था, उसी प्रकार अब भी उसके शिर पर राजचिन्ह, चंवर' और छत्र विराजमान थे। हरोल का नेतृत्व स्वयं पृथ्वीराज कर रहा था, निडरराय मध्य में था और पृष्ठ भाग की बागडोर परमार के हाथ में थी। राजपूतों की विशेषता का परिचायक एक अंश और भी उद्धृत करते हैं । जब सेनाएं आमने सामने हुई तो दोनों ओर से दूत, विरोध प्रदर्शन के लिए, राजाओं के पास भेजे गए । युद्ध जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर यह कार्य भाटों द्वारा सम्पन्न होता है इसलिए युवक सम्राट ने चन्द को ही बल्हरा के पास भेजा। "हे चन्द ! चालुक्य से जा कर कहो, मैं वैर लेने आया हूँ, परन्तु, मुझ से दो भेंट स्वीकार करो, एक लाल पगड़ी और दूसरी एक काँचली (अंगिया)। उसे इनमें से जो अच्छी लगे वही स्वीकार करने को कहो । उसे यह भी बता दो कि यह संसार स्वप्नवत् है, हम दोनों में से एक को | इस युद्ध में मरना है।" चन्द ने दूत के पवित्र कार्य का उचित रूप से पालन करते हुए, अपनी ओर से और भी बहुत-सी उत्तेजक बातें कहीं, जिनका चालुक्य ने अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने हए इस प्रकार उत्तर दिया "मैं भीम हैं और भारत के भीम के समान तुम से युद्ध करूँगा। जो पिता की गति हुई वही पुत्र को होगी।" तत्पश्चात् उसने भी जगदेव नामक भाट को पृथ्वीराज के पास भेजा। उसके शब्दों का तो यहाँ उल्लेख नहीं किया गया है परन्तु कवि ने उन्हें विष से भरे हुए बताया है। चन्द ने अपने राजा की ओर से बोलते हए दूत की असंस्कृत भाषा पर कटाक्ष कर के उसकी बात समाप्त कर दी। “गळबळ गळबळ गुजरातो बोल कर हमें क्यों परेशान कर रहे हो।" इससे यह अर्थ निकलता है कि दोनों बोलियों में उस समय भी उतना ही अन्तर था जितना कि आजकल है। ' गाय की पूंछ के बालों का बना चमर और छत्र; ये चिह्न युद्ध में प्राय: मुख्य योद्धा अथवा राजा पर नहीं लगाए जाते कि जिससे लोगों का ध्यान अन्यत्र बंटा रहे और वे सुरक्षित रहें। शेक्सपीयर 'कृत बॉसवर्थ फील्ड के युद्ध' वर्णन में रिचमाण्ड ने वीर माक्रमणकारी पर हमला करते हुए कहा है "तीन मुकुटधारी तो प्रब तक मारे जा चुके हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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