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पश्चिमी भारत की यात्रा
द्वितीय ग्रंथ की सामग्री भी उसके प्रथम ग्रंथ ( टॉड - राजस्थान ) की ही तरह की है और उसे एकत्र करने तथा सुव्यवस्थित कर पाठकों के सम्मुख पुस्तकाकार प्रस्तुत करने में उसने पूरी मेहनत और लगन से काम किया था । ' इस ग्रंथ के दृश्य अवश्य ही ( राजस्थान से ) भिन्न हैं । कुछ समय तक राजस्थान के सीमांत क्षेत्र में घूमते रहने के बाद सौराष्ट्र के वैसे ही कौतूहलोत्पादक प्रदेश तथा एकेश्वरवादी जैनियों के लिये प्रतीव पवित्र वहाँ के पर्वतों का परिचय अपने पाठकों को दिया है ।' अतः अपने इस यात्रा विवरण के बारे में टॉड का विश्वास था कि उसके प्रथम ग्रंथ की ही तरह इसका भी पूरा-पूरा स्वागत होगा। यही नहीं, इस ग्रंथ के प्रकाशन से कुछ ही पहिले जेम्स प्रिंसेप ने गिरनार के शिलालेख में सीरिया के यूनानी राजा एण्टियोकस और मिस्र के सम्राट् टालमी फिलाडेल्फस के नाम पढ़ लिये थे, तथा प्रशोक के उन शिलालेखों को पूरा-पूरा पढ़ लेने का भरसक प्रयत्न कर रहा था । इस प्रकार पश्चिमी भारत और मुख्यत: गिरनार के शिलालेख के प्राचीन इतिहास पर जो नया प्रकाश पड़ रहा था उससे प्रकाशकों को भी विश्वास था कि टॉड कृत इस ग्रंथ को इतिहास प्रेमी उत्सुकतापूर्वक बड़े चाव से पढ़ेंगे । परन्तु कुछ योगायोग ही ऐसा रहा कि तब भी इस ग्रंथ का विशेष प्रसार नहीं हुआ, और सन् १८५६ ई० में एलेग्जेण्डर किन्लाक फोर्ब्स कृत 'रास - माला' के प्रकाशन के बाद तो टॉड का यह यात्रा विवरण सर्वथा उपेक्षित ही रहा, जिससे तदनन्तर इसका दूसरा संस्करण भी नहीं प्रकाशित हो पाया और अब सन् १८३६ ई० के उस एकमात्र संस्करण की प्रतियाँ देखने को भी नहीं मिलती हैं ।
टॉड ने अपना यह ग्रंथ मिसेज़ कर्नल विलियम हण्टर ब्लेअर को समर्पण किया, जो उच्च कोटि की चित्रकार थीं। इस महिला का पति, कर्नल विलियम हण्टर ब्लेअर, तब बम्बई प्रांत के सेनापति, जनरल सर चार्ल्स कॉलविल, के आधीन सेनानायक वर्ग में नियुक्त था । अतः टॉड से प्रेरणा पाकर तथा टाँड द्वारा प्रस्तावित यात्रा क्रम के अनुसार जब जनरल कालविल ने पश्चिमी भारत के उसी क्षेत्र की यात्रा की तब श्रीमती ब्लेअर भी इस यात्रा में अपने पति के साथ थीं। तब उन्होंने श्राबू, चंद्रावती, अनहिलवाड़ा पाटन, और जूनागढ़ श्रादि के अनेकानेक प्रतीव सुन्दर रेखाचित्र बनाये और यों टॉड के शब्दों में वे 'श्राबू को इंगलैंड ले आई। श्रीमती ब्लेयर के ऐसे ही आठ रेखाचित्र टॉड के इस यात्रा विवरण में तब प्रकाशित किये गये थे ।
टॉड ने जून १, १८२२ ई० को उदयपुर से सर्वदा के लिये बिदा ली और बनास नदी के उद्गम स्थान के पास ही प्ररावली पर्वत श्रेणी को पार कर वह
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