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________________ प्रकरण - ६; कुमारपाल [ १९१ ऐसी पद्धति है जिससे राजपूत राजतन्त्र के दो तथ्यों का पता चलता है, जो इस (तन्त्र) को एक साथ चुनाव और दत्तक प्रथाओं पर आधारित सिद्ध करते हैं यद्यपि पूर्व प्रथा को किन्हीं विशेष और आवश्यक अवसरों पर ही ग्रहण किया जाता है। इन राज्यों की संपूर्ण सत्ता यहां के बड़े-बड़े सामन्तों में निहित होती है; हम ऐसे कितने ही उदाहरण उपस्थित कर सकते हैं कि राज्य के उत्तराधिकारी में व्यक्तिगत दोष होने के कारण राजवंश की अन्यतम शाखा में से किसी व्यक्ति का चुनाव कर लिया गया है और सामन्तों की इच्छानुसार राजा ने उसी व्यक्ति को उत्तराधिकारी स्वीकार करके गोद ले लिया है । परन्तु, मुझे ऐसा कोई दूसरा उदाहरण याद नहीं है कि जिसमें किसी अन्य शाखा का राजा गद्दी पर बिठाया गया हो और फिर भी उस राजवंश के अभिधान में कोई परिवर्तन न हुआ हो । यद्यपि कुमारपाल ने 'सिद्धराज की पगड़ी नहीं बँधाई थी (जो कि गोद होने का चिन्ह है)' फिर भी चालुक्य बन जाने के नाते यह उसका कर्तव्य हो गया था कि वह इस बात को बिलकुल भूल जाए कि राजा (सिद्धराज) के अतिरिक्त उसका पिता कोई और था, और उसके इसी व्यक्तित्व को स्वीकार करते हुए सोलंकियों के भाट ने अपनी वंशावली में उसे चालुक्य के अतिरिक्त कभी और कुछ नहीं बताया है। 'इन सब वंशों में चालुक्य वंश प्रधान है; कुमारपाल, जिसके गुरु हेमाचार्य हैं, इस वंश का भूषण है; (ये दोनों) मानव जाति के सूर्य और चन्द्रमा हैं ।' अब हम उन अट्ठारह' प्रदेशों के नामों का वर्णन करेंगे जो उस समय बल्हरा साम्राज्य के अधीन थे; इन सब का मिल कर इतना बड़ा विस्तार था कि यदि शिलालेखों से इस उल्लेख की पुष्टि न होती तो हम इसे 'चरित्र' लेखक की सारहीन अतिशयोक्ति मात्र ही समझ लेते । आश्चर्य तो इस बात का है कि बारहवीं शताब्दी में लिखे हुए इस विवरण का आठवीं शताब्दी में अरब यात्रियों द्वारा किए हुए वर्णन से भी पूर्ण सामंजस्य है कि यह साम्राज्य भारतीय प्रायद्वीप से लेकर हिमालय पर्वत की तलहटो तक फैला हुआ था। 'गुजरात', कर्णाटक', मालवा, मरुदेश', सूरत', (सौराष्ट्र), सिन्धु', कोंकण', सेवलकर, (शैवलक) राष्ट्रदेश, भंसबर'' (Bhansber), लारदेश', संकुलदेश'', कच्छदेश', जालंधर', मेवाड़५, दीपकदेश', ऊच", (Outch) बम्बेर', करदेश, भीराक° (Bheerak); और इनके अतिरिक्त चौदह और प्रदेश थे जिनकी , कर्णाटे गुर्जरे' लाटे । सौराष्ट्र कच्छ सन्धर्व' । उच्चायांचव भम्भैयाँ* मारवे मालवे तथा ॥१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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