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पश्चिमी भारत की यात्रा दिया गया; इसके अतिरिक्त अन्य सामन्तं भी उसीके अधीन हुए। आगे चल कर 'चरित्र' में अन्य राजवंशों के साथ कुमारपाल की वंशावली एवं प्रणहिलवाड़ा के अधीनस्थ अट्ठारह राज्यों का वर्णन किया गया है। कुमारपाल सिद्धराज के वंश में नहीं था अपितु अजमेर के चौहान राजाओं से उसका निकास था। "गुजरात में दैथली (देवस्थली) नामक ग्राम में त्रिभुवनपाल रहता था जो बारह नामों का स्वामी था। काश्मीर' से ब्याही हुई एक रानी से उसके तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं, जिनके नाम कुमारपाल, महीपाल और कीर्तिपाल तथा पेमलदेवी और देवलदेवी थे। उसका वंश छत्तीसों जातियों में सबसे उँचा था।" इन जातियों की एक तालिका भी दी हुई है, जिसके अन्त में यह पद्य है
"इन सबसे ऊंचा चौहान कुल है, जिस कुल में कुमार नरिंद उत्पन्न हुप्रा है, जो प्राकाश में सूर्य के समान है, मानसरोवर मे हंस के समान है,
और जिसने चालुक्य वंश को उज्ज्वल कर दिया है।" यहां हम चौहानवंशीय राजा के चालुक्यों की राजगद्दी पर बैठने एवं अपरवंश के नाम में कोई परिवर्तन न होने के विषय में विचार करेंगे। यह एक
'बौद्ध मतावलम्बी इन राजपूतों और काश्मीर के राजाओं में ऐसे वैवाहिक सम्बन्धों के कितने ही उल्लेख मिलते हैं जिससे ज्ञात होता है कि ये लोग एक ही जाति के थे और उसी मत के मानने वाले थे। संस्कृत मूल में 'नाम्ना कश्मीरीदेवीति' पाठ है, इससे ज्ञात होता है कि रानी का नाम 'कश्मीरदेवी' था। राजकुलों में रानियों को पितृवंश से संबोधित करने का रिवाज है। • मूल पद्य इस प्रकार हैं
छत्रीस राज कुळीस बखाण , सघळामां मोटो चूहाण ॥ ३४ जिम तारांमां मोटो चंद, जिम सुर मांही मोटो इंद । जिम परवतमा मेर बखांरिण, तिम क्षत्रीमा जाति चुहारण ॥ ३५ जेरणई कुली हुप्रो कुमरनरिंद , जाणे प्रगटयो गगनि दिणंद ॥ मानसरोवर जेहो हंस , जेणाई दीपान्यो चउलुकवंस ।। ३६
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