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पश्चिमी भारत की यात्रा हिन्दू और फारसी भाषाओं में, 'प्रधान' अथवा 'मुख्य ताज' या मुकुट है । इससे मुझे यह कल्पना होती है कि यह 'चौर ताज' का रूपान्तर है जिसका अर्थ होता है 'चावड़ों में मुख्य' । व्यक्तिवाचक नामों के विषय में फ़ारसी भाषा की यह अपूर्णता प्रसिद्ध ही है, जैसा कि पहले बताया जा चुका है, कि केवल एक नुकते के इधर-उधर हो जाने से शब्द कुछ का कुछ बन जाता है । अणहिलवाड़ा पर पड़ने वाली विपत्तियों, सोमनाथ और अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों पर किए गए अत्याचारों के बदले में पथ-प्रदर्शकों द्वारा गज़नो लौटते हुए महमूद की सेनाओं को जंगल में गुमराह किए जाने की विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में पाठकों को फरिश्ता और अबुलफजल के विवरणों को पढ़ना चाहिए।
दुर्लभ अथवा नाहर राव - संवत् १०५७ (१००१ ई०) में गद्दी पर बैठा और उसने साढ़े ग्यारह वर्ष तक राज्य किया; इसके बाद, उसका मन आत्मानुसन्धान एवं आत्मोद्धार के लिए उद्यत हुआ । वह अपने पुत्र को राज्य सौंप कर गया को चला गया। प्राचीन राजपूत राजाओं में यह प्रथा सदा से चली आई है और असाधारण नहीं मानी जाती है। दुर्लभ धार के प्रसिद्ध राजा भोज के पिता मुजराज का समकालीन था और हमें 'भोज चरित्र' से यह भी ज्ञात होता है कि गया जाते समय अपदस्थ राजा ने मुंज से भेंट की, जिसने उसे पुन: राज्य ग्रहण करने की सलाह दी परन्तु उसके पुत्र ने इस परामर्श को पसन्द नहीं किया।
भीमदेव, जिसका नाम उसके समकालीन राजपूत राजाओं में सुप्रसिद्ध है, संवत् १०६६ (१०१३ ई०) में गद्दी पर बैठा ।' उसका ४२ वर्ष का दीर्घ राज्यकाल गौरव से हीन नहीं था, जिसमें मुसलमानों ने कई बार उत्तरी भारत पर हमले किए । महमूद की चौथी पीढ़ी में मौदूद इसी के समय में हुआ और तभी हिन्दुओं ने एक महान् प्रयत्न उस जूए को उतार फेंकने का किया, जो उनको दबाए हुए था। अजमेर के प्रसिद्ध चौहान राजा बीसलदेव (दिल्ली के विजयस्तम्भ के वीसलदेव) ने इस संघटन की संवत् ११०० (ई०१०४४) में अध्यक्षता की । अपने धर्म और स्वाधीनता के लिए संयुक्त प्रयत्न करने वाले देश के अन्य राजाओं के साथ, जिन्होंने बीसलदेव को अपना नायक चुना था, अणहिलवाड़ा के राजा को भी आमन्त्रित किया गया था; परन्तु, अजमेर और अणहिलवाड़ा के घरानों के पुराने वैर के कारण वह (भीमदेव) इस आमन्त्रण को स्वीकार न कर सका और इस अस्वीकृति के फलस्वरूप ही इन राज्यों में युद्ध का सूत्रपात हुना, जो कवि चन्द की पुस्तक के ६६ अध्यायों में से एक का विषय बन गया। बीसलदेव अपनी सहयोगी सेनाओं के साथ विजय पर विजय करता चला गया, यहां तक कि सम्पूर्ण पंजाब शत्रुओं से रहित हो गया और
१ भीमदेव संवत् १०७६ (१०२२ ई.) में गद्दी पर बैठा था।-रासमाला।
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