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________________ प्रकरण - ६; सोलंकी राजवंश [ १७५ यहीं छोड़ कर वह कल्याण लौट गया । " बीरराय के मिलन देवी ( मीनल देवी ) नाम की पुत्री थी जो अजमेर के चौहान राजा को ब्याही गई थी । उसीकी पन्द्रहवीं पीढ़ी में कुमारपाल हुआ, जिसके नाम पर इस ग्रंथ की रचना हुई है । 'बीरराय के एक पुत्र हुआ जिसका नाम चन्द्रादित्य था । उसका पुत्र सोमादित्य और उसका तनुज भोमादित्य हुआ, जिसके तीन पुत्र थे, उर अथवा अर, धीतक और अभिराम । उर सोमेश्वर ( सोमनाथ ) की यात्रा करने पाटन गया और वहाँ पर उसने राजा सामन्त की पुत्री लीलादेवी के साथ विवाह किया । प्रसूति के समय उस राजकुमारी की मृत्यु हो गई, परन्तु उसकी कुक्षि को काट कर बच्चा बाहर निकाल लिया गया। इस बालक का जन्म मूल नक्षत्र में होने के कारण ज्योतिषियों ने उसका नाम मूलराज रखा। राजा सामन्त चावड़ा ने अपना कोई पुत्र न होने के कारण, अपना राज्य जीवन - काल में ही मूलराज को सौंप दिया; परन्तु, बाद में पछता कर इसे वापस लेने वाला था कि उसके भानजे ने उसे मार डाला । ये सात कभी कृतज्ञ नहीं होते - जामाता, सर्प, सिंह, शराब, मूर्ख, भानजा और राजा । इनमें से कोई भी गुण ( कृतज्ञता) नहीं 7 मानता । " सोलंकी भाट के इतिहास में कल्याण के राजाश्रों में इन्द्रदमन नामक राजा का नाम श्राता है। भाट का कहना है कि इसी राजा ने जगन्नाय का मन्दिर बनवाया और 'पूरी' की नगरी बसाई जो उसके नाम पर इन्द्रपुरी कहलाती है । यह पिछली बात तो सही हो सकती है और उसने मन्दिर का जीर्णोद्धार भी करवाया होगा परन्तु यह नहीं हो सकता कि जगन्नाथ का मन्दिर उसने ही बनवाया हो । उड़ीसा की राज्य सरकार द्वारा १६५८ ई० में प्रकाशित ' Visit Orissa' नामक पुस्तिका में पृ० १२१ पर लिखा है कि जगन्नाथ का मंदिर सर्व प्रथम 'ययाति-केसरी' ने बनवाया था | ११६८ ई० में चोड़ गंगदेव ने इसका पुनर्निर्माण मात्र कराया । जगन्नाथमंदिर में सुरक्षित ताड़पत्रीय लेखों के आधार पर ज्ञात होता है कि ५०० ई० से ११३२ ई० तक केसरी- वंश के ४४ राजाओं ने राज्य किया था । ययाति इस वंश का संस्थापक था। फि गंग वंश के हाथ में सत्ता भाई । ऊपर की टिप्पणी में इन्द्रदमन के स्थान पर, इन्द्रवर्मन नाम हो सकता है। वास्तव में जगन्नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराने वाले राजा का नाम अनन्तवर्मन चोड़देव था जिसका समय १२ वीं श० का उत्तरार्ध माना गया है । —History of Medieval Hindu India Vol. I; C.V. Vaidya pp. 318-326 २ जामाता वींछी नइ वाघ, मदिरा पांणी मूरख प्रभाग ; भगिनी-सुत, पृथ्वी नों नाथ, धुं गुण नवि जाणइ सात ॥ ७३ ॥ Jain Education International कुमारपाल रास - ऋषभदास पृ. १८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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