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पश्चिमी भारत की यात्रा
तृतीय- बाघेला वंश जो, शिलालेखों में अब भी चालुक्य कहलाते हैं।
बीसलदेव
भीमदेव
अर्जुनदेव सारङ्गदेव गेला देव
१२४६ ११६३ १५.
१२६४ १२०८ ४२
२
१३०६
१३२६
१२५०
१२७३
१३५० १२६४
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पहले दोनों वंशों की तालिकाएँ केवल कुमारपालचरित्र के आधार पर दी गई हैं, जिसमें कुमारपाल तक ही विवरण प्राप्त है । इस वंश के शेष नाम एवं तीसरी तालिका अन्य दो स्रोतों से प्राप्त की गई है । पहला, उसी शाखा के, अब मेवाड़ में बसे हुए, सोलंकी सरदारों के भाट से प्राप्त वंशावली है; और दूसरा, भौगोलिक और ऐतिहासिक विषयों आदि के एक फुटकर संग्रह में दी हुई वंशावली है, जो पश्चिम की बोली में है और एक जैन यति से प्राप्त हुना है।' इसके प्रति - रिक्त इन राजवंशों के तिथिक्रम की जाँच मैंने बीस वर्षों के शोधकाल में एकत्रित शिलालेखों से भी कर ली हैं, जिनको अन्य वंशों के इतिवृत्तों की प्रतिलिपि से टकराने पर एक ऐसे समतिथिक्रमात्मक प्रमाण की रचना हो जाती है जो कि बिरले ही पौर्वात्य इतिहासों में देखने को मिल सकती है । संक्षेप में ये सभी बातें आगे चल कर हमारी जानकारी में आवेंगी । प्रसंगवश हम यहाँ पर यह भी कहेंगे कि सन्त अबुल फजल ने हमारे देशवासी आलोचकों की तरह प्राँख मींच कर यह फ़तवा नहीं दे दिया था कि हिन्दुओं के पास इतिहास जैसी कोई वस्तु है ही नहीं । उसने अपना 'गुजरात के राजानों का संक्षिप्त इतिहास' इस प्रकार आरम्भ किया है "हिन्दुओंों की पुस्तकों में लिखा है कि विक्रमाजीत के संवत् ८०२ तदनुसार अल हिजरी सन् १५४* में बंसराज पहला राजा हुआ
श्राबू के शिलालेख
सोमनाथ के लेख
संवत् १३५४ अथवा सन् १२६८ ई. में समाप्त; फरिश्ता के मतानुसार एक वर्ष पहले समाप्त |
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इस संग्रह में अणहिलवाड़ा के सभी राजवंशों की तिथिक्रमानुसार तालिका, पश्चिमी बनास के उद्गम एवं मार्ग तथा पुरातत्त्व विषयक अन्य कितनी ही मनोरञ्जक बातों का विवरण दिया हुआ है ।
इन तालिकाओं में दिया हुआ तिथिक्रम 'रासमाला' से भिन्न है ।
यहाँ पर अबुल फजल ( अथवा उसके अनुवादक) की कालगणना गलत है । सं० ८०२-५६ = ७४६ ई० श्राता है, परन्तु, हिजरी सन् १५४ के अनुसार ७७१ ई० होता है; प्रतः २५ वर्षका अन्तर श्राता है। अणहिलवाड़ा की स्थापना एवं राजवंशों के विषय में हम हिन्दू तिथियों का ही अनुसरण करेंगे जिसके अनुसार अणहिलवाड़ा की नींव संवत् ८०२ अर्थात ७४६ ई० में रखी गई
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