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________________ १३४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा बनाने के लिए तोड़-फोड़ कर काम में ले लिए गए हैं जो उक्त विनाशकों के समान ही अपवित्र और गह्यं हैं । "परमार राजाओं की प्राचीन राजधानी चन्द्रावती के खण्डहर प्राबू पर्वत की तलहटी से बारह मील दूर बनास नदी के किनारे घने जङ्गलों वाले प्रदेश में स्थित है । प्राचीन परम्परागत कहानियों और काव्यों में इसका विवरण पाया जाता बताते हैं परन्तु, १८२४ ई० के प्रारम्भ तक, अर्थात् जब यह निरीक्षण किया गया तब तक, यूरोपवासियों ने इसे कभी नहीं देखा था, जिनको अनुश्रुतियों के आधार पर भी इसका कोई ज्ञान नहीं था और इसका प्राचीन इतिहास भी विलुप्त हो चुका था, केवल थोड़ा सा विवरण कर्नल टॉड के पास बच रहा था । विशाल मैदान पर बिखरे हुए संगमरमर एवं अन्य पत्थर के टुकड़ों के आधार पर यदि निर्णय लिया जाय तो ज्ञात होता है कि यह नगरी बहुत बड़ी रही होगी और यहां की सुन्दरता एवं वैभव का अनुमान अब तक बची हुई विशाल संगमरमर की उन इमारतों से लगाया जा सकता है जिनमें से विभिन्न श्राकार-प्रकार वाली बीस इमारतों का पता उस समय लगा था जब हिज एक्सलेंसी सर चार्ल्स कॉलविल ( Colville) ने अपने दल सहित सन् १८२४ ई० में इस स्थान का निरीक्षण किया था। एक का प्रतिनिधि रूप से यहां पर वर्णन किया जाता है । यह कोई ब्राह्मण समाज का मन्दिर है जिसमें श्राकृतियां और अन्य आलंकारिक वस्तुओं की सजावट बहुत बारीक कुराई एवं उभड़ी हुई रीति से की गई है । मानव-प्राकृतियां प्रायः मूर्तियों के समान हैं और आधारमात्र के लिए प्रभूत मात्रा में भवन में लगाई गई प्रतीत होती हैं । भारतीय मूर्तिकला में कदाचित् ही कोई अन्य कृति इनकी समानता कर सकती है, और कितनी ही मूर्तियां तो ऐसी हैं जो किसी बहु- परिष्कृत रुचि वाले कलाकार के लिए अपमान का कारण नहीं बनेंगी । यहाँ पर ऐसी एक सौ प्रड़तीस मूर्तियां हैं। छोटी से छोटी दो फीट ऊँची मूर्तियां हैं जो श्रेष्ठ कारीगरी से बनाये गए ताकों [आालों ] में रखी हुई हैं । प्रधान मूर्तियां ये हैं - त्र्यम्बक ( अथवा तीन मुँह वाली आकृति ) घुटने पर स्त्री बैठी हुई, दोनों एक गाड़ी में बैठे हुए, बीस भुजाओं वाले शिव, वही शिव, जिनके बाई ओर एक महिष है और दाहिना पैर उठा कर गरुड़ जैसी श्राकृति पर रखा हुआ, महाकाल की एक प्रतिमा जिसके बीस भुजाएं हैं, एक हाथ मे बालों से नरमुण्ड पकड़े हुए, अपराधी नीचे पड़ा हुआ और दोनों ओर दो यक्षिणियां खड़ी हुई हैं, जिनमें से एक तो नरमुण्ड से प्रत्रवित रक्त का पान कर रही हैं और दूसरी किसी मनुष्य के विलग हाथ को निगल रही है। ऐसी ही और भी बहुत सी प्राकृतियां हैं जो विविध मुद्राओं में विविध उपकरणों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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