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________________ प्रकरण - ७, बावड़ियों 1 १३३ रिक्त कदाचित् हो कोई नागरिक स्थापत्य का नमूना कहीं देखने को मिलेगा; परन्तु, कहीं भी क्यों नहों, वे मिस्री स्थापत्य की भांति बाहर की ओर 'ढालू' होने के कारण स्पष्ट रूप से पहचान में आ जाते हैं । घरेलू अथवा पारिवारिक इमारतों में हम उन उपयोगी एवं कलात्मक गड्डों की गणना कर सकते हैं जो बावड़ियाँ कहलाते हैं; जलाशयों एवं ग्रीष्म ऋतु में रहने के स्थानों की भांति इनका दोहरा उपयोग किया जाता है। इनमें से कोई-कोई तो बहुत बड़ी होती हैं। ये प्रायः २० से २५ फीट तक व्यास की गोल गड्ढों जैसी होती हैं और इनकी गहराई पानी की प्राव के अनुपात से होती है। पानी के किनारे से धरातल तक एक पर एक बने हुए खण्डों में चारों तरफ कमरों के वर्ग होते हैं, जो गर्मी के दिनों में सरदारों और उनके परिजनों के लिए आराम करने की जगह बन जाते हैं । एक खण्ड से दूसरे खण्ड तक पहुँचने के लिए सीढ़ियां बनी होती हैं। यदि अन्दर की तरफ ढाल खूब न रखा जाय अथवा दीवारें खूब मोटी-मोटी दानवाकार न बनाई जाएँ तो बाहर के दबाव और भारत की बड़ी-बड़ी इमारतों को प्रायः खराब करने वाली वनस्पति के कारण ये बावड़ियां कुछ ही शताब्दियों में नष्ट हो जाएं । आजकल के राजाओं के खजानों में तो ऐसी विलास की सामग्रियां बनवाने के लिए शायद ही धन प्राप्त हो सके । मेरी जानकारी में तो दतिया का राजा ही एक मात्र अपवाद है, जिसने एक बड़ी, ठोस और विशाल वापिका बनवाई है। मेरे अन्वेषक दल ने इन्हीं खण्डहरों में परमारों के समय के तीन सिक्के भी प्राप्त किए जिनमें से एक पर तो छाप स्पष्ट है । अब, यहां पर थोड़ी देर के लिए मैं अपना नीरस ऐतिहासिक वृत्त रोक देता हूँ और अपनी एक मित्र के विवरण का अंश उद्धत करके पृष्ठ को सजीव बना देने की चेष्टा करता हूँ। इन मित्र की पैंसिल का मेरी कृति को मुख्य आकर्षण देने के लिए, मैं बहुत-बहुत आभारी हूँ । संसार को जब यह ज्ञात हो जायगा कि इन अतीत के स्मारकों का अब कोई चिन्ह भी अवशिष्ट नहीं है तो वह इनके वर्णन के प्रति दोहरा रुचि के साथ प्राकृष्ट होगा।' गिरवर के उस विनाशक ने, जिसको मैं पहले ही कोस चुका हूँ, बहुत बुरा काम किया है; और अब वह शिव का शिखरबन्ध देवालय तथा अद्वैतवादी जनों के भव्य तोरण और मेहराबें आदि सब नष्ट कर दिए गए हैं, लूट लिए गए हैं और बेच दिए गए हैं अथवा ऐसी इमारतों को दृढ १ यहां लेखक का अभिप्राय श्रीमती हण्टर ब्लेयर से है, जो अपने रेखा-चित्रों द्वारा 'पाबू को इंगलेण्ड ले गई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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