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________________ प्रकरण - ७; चन्द्रावती [ १२६ हैं । एक तीसरा युग भी हमारे सामने आता है अर्थात् पन्द्रहवीं शताब्दी जब कि पश्चिमी भारत की नवीन राजधानी, अहमद के नगर, को जीवन प्रदान करने के निमित्त इस नगरी का बलिदान हो चुका था। मैंने 'इतिहास' में उस वंश का वर्णन किया है जिसने चन्द्रावती के ध्वंसावशेषों से इस नगरी को ही नहीं वरन् गुजरात की प्राचीन राजधानी अरणहिलवाड़ा को भी मात करने वाले अहमदाबाद को बसाया था। परन्तु, अहमद का नगर, जिसके स्थापत्य की सुन्दरता हिन्दूकला की योजना एवं बारीक कारीगरी की दोहाई दे रही है, द्रुतगति से विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है । जब स्वधर्म-त्यागी जक' (जो इतिहास में अपने मुसलमानी नाम वजीर-उल-मुल्क के नाम से अधिक प्रसिद्ध है) के पौत्र अहमद ने नई राजधानी स्थापित करके अपना नाम अमर करने का निश्चय किया और वह स्थान चुना जहां भीलों की एक जाति बसी हुई थी, जिनकी लूट-पाट और आक्रमण देश के लिए भय का कारण बने हुए थे। तब उन लोगों को वहां से उखाड़ कर कीर्तिलाभ की धुन में उसने उस भूमि की स्थानीय खामियों की ओर ध्यान नहीं दिया और वह नगर साबरमती के भहे, अस्वास्थ्यप्रद, नीचे और सपाट किनारे पर बन कर खड़ा हो गया। चन्द्रावती की सामग्री को ही प्रहमदाबाद पहुँचा कर वह सन्तुष्ट नहीं हुआ वरन उसने निश्चय किया कि शरीर के साथ-साथ आत्मा को भी वहीं ले जाया जाय प्रर्थात् घरों और मन्दिरों के मसाले के साथ जनता भी वहीं पहुँच जाय ।' परन्तु, अपने दोनों तीर्थों, आबू पर्वत और आरासण, के बीच में साबरमती के किनारे पर चन्द्रावती की आत्मा को क्षीण होते हुए जब कोई जैन उपासक देखता तो वह अपने प्राचीन निवास के मन्दिरों पर विशाल मसजिदों के निर्माण का ध्यान आते ही उस नदी के किनारे प्राचीन काल के किसी निष्कासित यहूदी की भांति सौ-सौ आँसू रो पड़ता था। प्रस्तु, चन्द्रावती और इसकी स्थिति पर फिर आइए । गिरवर से यहां तक के मार्ग के अधबीच में दक्षिण-पूर्व दिशा में माहोल [मावल] नाम का ग्राम है, जो इस नगरी का उपनगर कहा जाता है। इसी ग्राम में इसका एक दरवाजा खड़ा है। बनास नदी माहोल और विध्वस्त नगर के पास होकर बहती है जो सम्भवतः इसके किनारे पर ही बसा हुआ था। गांव में पहुंचने से पहले एक १ जफर, जो बाद में मुजफ्फर खान के नाम से प्रसिद्ध हुआ, मूलत: टाक जातीय क्षत्रिय था। -राजविनोद महा-काव्या (रा.प्रा.वि.प्र.) भूमिका, पृ. ११ २ इसी प्रकार के महान् स्थानान्तरण का प्रयत्न एक बार अहमद से भी बड़े सनकी महमूद खिलजी ने किया था जो दिल्ली को विन्ध्याचल पर ले जाना चाहता था; परन्तु मांड और अहमदाबाद के भाग्य में समानता हो लिखी थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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