________________
[ ११७
नीचे देखने पर गहरी खाई सामने बनी रहती है, जिसमें बड़े-बड़े जामुन और इमली आदि के सघन पेड़ अन्धेरे में लिपटे हुए से खड़े हैं। घाटी से ऊपर की थोर पहाड़ी का मुख वादलों से ढका हुआ था इसलिए हम प्राय: दिन के अंतिम प्रकाश में टटोल-टटोल कर मठ के नगाड़े की आवाज के सहारे रास्ता ढूंढ रहे थे, जो गोमुख से प्रवाहित होकर नीचे के भरने में पड़ने वाले पानी के स्वर से प्रतिस्पर्धा कर रही थी । इसका प्रभाव वास्तव में बहुत अच्छा पड़ा। एक भो कदम यदि गलत पड़ जाय तो मनुष्य का पता कहाँ लगे ? फिर तो उसकी सभी शक्तियाँ व्यर्थ हो जायें । अन्त में, लोगों ने हमारा 'हल्ला' सुन लिया और उस अन्धकार में चिरागें दिखाई दीं, जिनके प्रकाश में वह पवित्र मन्दिर दृष्टिगोचर हुया । यात्रियों को उतरने में सहायता देने के लिए साधु चेले इधर-उधर फिरने लगे । सॅल्वॅटर रोजा' ( Salvator Rosa ) इस दृश्य को अपनी पैन्सिल की सर्वोत्कृष्ट चित्र रचना के लिए चुन लेता । गोमुख के पास पहुँच कर हम कुछ क्षण साँस लेने के लिए ठहरे और फिर थोड़ी देर में केलों की कुञ्ज में जा पहुँचे, जहाँ मेरे स्वागत के लिए पाल [ खुला तम्बू ] तना हुआ था । यद्यपि मैं बुरी तरह थक चुका था परन्तु उत्सुकतावश उस समय तक चैन न ले सका जब तक कि वसिष्ठ के मन्दिर को देख न लिया । मन्दिर की इमारत छोटी और साधारण है; बहुत पुरानी होने पर भी इसका जीर्णोद्धार इतनी बार हो चुका है कि मूल श्राकृति का तो कोई अंश मात्र प्रवशिष्ट रहा है । निज मन्दिर में अन्तिम छोर पर अंगरखे [लबादे ] से ढँके हुए व्यथित मुनि के शिरोभाग मात्र के दर्शन हुए। मूर्ति काले पाषाण की बनी हुई है और एक नीची सी वेदी पर विराजमान है | समस्त मन्दिर जगमगा उठा और वसिष्ठ की प्रसन्नता के लिए आश्रम - वासी स्तोत्र पाठ करने लगे । जूते [ बूट ] पहने हुए होने के कारण मैं द्वार के बाहर ही खड़ा रहा और रुचि के साथ उनके सुललित स्तोत्र को प्राद्योपान्त सुनता रहा । वृद्ध गुरु अथवा महन्त, जो प्राकृति में लम्बा और दुर्बल था, बरामदे में कृष्ण मृगचर्म पर बैठा था; ऐसा मालूम होता था मानों उसने अपने शरीर के मांस को वास्तव में निश्शेष कर दिया था, उसके सुपुष्ट और सुचिक्कण चिकने-चुपड़े चेलों के और उसके शरीर का यह अन्तर स्पष्ट था । उसकी जटाएँ उलझी हुई थीं, शरोर भस्म से प्रालिप्त था और वह इतना ध्यानमग्न था कि बाहरी वस्तु की ओर दृष्टि निक्षेप भी नहीं कर रहा था । आरती का दृश्य
प्रकरण
.
६; वसिष्ठ का मन्दिर
Jain Education International
१ कार्ड बोर्ड के डिब्बों और इत्रदानों आदि पर चित्रों और विविध डिज़ाइनों को बनाने वाला एक प्रतिभाशाली कलाकार । पेरिस के Louvre Museum में इस कलाकार के बहुत से चित्र संगृहीत हैं । — A Guide to the Louvre - L. D. Luard, 1923
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org