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________________ प्रकरण - ६ ; विमलशाह की मूर्ति [ १०६ की मात्रा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने कभी उन राजाओं की मूर्तियों को गिना तक नहीं जो विमलशाह की आज्ञा का पालन करने के लिए अपना राज्य छोड़ कर यहाँ चले पाए थे । जब मैंने उनको बताया कि जब तक वे साहु और उसके भतीजे को 'बर्बर राजाओं में सम्मिलित न कर लें तब तक उनकी संख्या दस हो रहती है तो उन्हें बहुत आश्चर्य हा। और जब मैंने फिर बताया कि उनमें से प्रत्येक नास्तिक के चार-चार हाथ थे तब तो उनसे कुछ भी कहते न बना; परन्तु यह स्वीकार करते हुए उन्होंने साहकारों को बर्बर-संगति से बचा लिया कि जिनके दो ही हाथ हैं वे राजा नहीं हो सकते । सुबह होते-होते एक नई कथा सामने आई और वे 'बारह राजा' साहूकार के 'कुटुम' [कुटुम्ब अर्थात् भाई-भतीजों और जामाता आदि में बदल गए। मैंने एक और ही सुझाव दिया, वह यह था कि यह शायद साह की वंशपरम्परा का कोई पौराणिक सन्दर्भ हो सकता है, जिसकी उत्पत्ति राजपूतों की चौहाण शाखा से है, जिनके देवता चतुर्भुज हैं और साहू को मण्डली के बीच में इसलिए रखा है कि उसने उनके वंश में एक महान धार्मिक कार्य सम्पन्न किया है। उन्होंने मेरे सुझाव के उत्तर में धीरे से केवल यही कहा 'भगवान जानें ।' अस्तु, कोई भी कारण हो, मूर्तिभञ्जक तुर्क को तो उसमें कोई रुचि थी नहीं, अत: उसने उपेक्षाभाव से उन राजाओं के चारों हाथ तोड़ दिए तथा केवल ठंठ छोड़ दिए जिनसे इतना सा ज्ञात हो सकता है कि ऐसी चीजें भी कभी थीं । निर्माता की अश्वारोही मूर्ति के पीछे ही कुछ फीट ऊँचा एक स्तम्भ है, जो तीन संगमर्मर की सीढ़ियों से युक्त वर्तुल पीठ पर खड़ा है। इसके तीन खण्ड हैं जिनमें प्रत्येक ऊपर का खण्ड नीचे वाले की अपेक्षा ऊपर की ओर उत्तरोत्तर पतला होता चला गया है। इस स्तम्भ पर अन-गिनत छोटे-छोटे ताक उत्कीर्ण हो रहे हैं जिनमें से प्रत्येक में कोई न कोई जिनेश्वर अपनी सहज ध्यानावस्थित मुद्रा में विराजमान है । इस प्रकार का स्तम्भ प्रायः सभी जैनमन्दिरों के साथ बना होता है; मेरी इच्छा होती है कि दिल्ली की कुतुबमीनार को में इसी की श्रेणी में रखू - यह कल्पना करते हुए कि इस्लामी कारीगरों ने अपर मीनार से अवाञ्छनीय मूर्तियों को हटाने के लिए ही उसे केवल कुराई के काम से सजा भर दिया है । चित्तौड़ के पहाड़ पर भी एक इसी तरह का स्तम्भ है जिसकी ऊंचाई ८० फीट है और उस पर मूर्तियाँ भी इसी तरह बनी हुई हैं। सब से ऊपर एक खुली गुम्बद है जो खम्भों पर स्थित है। मैंने वहाँ से कुछ शिलालेखों की नकलें ली हैं तथा उनके अनुवाद भी किए हैं। उनमें से एक में राणा कुम्भा के तिलक-व्यवधान का वर्णन है । जब उसको मेवाड़ से निकाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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