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प्रकररण ६
deerड़ा; वृषभदेव का मन्दिर; इसका इतिहास वर्णन; मन्दिर के उत्सव; शिलालेख; पार्श्वनाथ का मन्दिर; इसकी वास्तुकला और विवरण; इन विशाल स्थलों के विषय में विचार; श्राबू के कुटीर; फल और वनस्पति; अर्बुदा माता का मन्दिर; गुफाएँ; तलाब; अन्तिम उतराई का खतरा; गोमुख; वसिष्ठ का मन्दिर; मुनिपूजन; शिलालेख; धारपरमार की छतरी; पातालेश्वर का मन्दिर; मूर्तियाँ; विचारविमर्श; श्राबू को ऊँचाई; लेखक के बॅरामीटर की खराबी ; मिट्टी की किस्म; जंगल का रास्ता; बर्रो का श्राक्रमण; श्राबू की परिधि; घाबू और सिनाइ (Sinai) के प्राकृतिक दृश्यों में भिन्नता; लेखक के स्वास्थ्य पर चढ़ाई
का प्रभाव |
जून १४वीं - देलवाड़ा - सुबह सात बजे, दोपहर में और शाम को ४ बजे बॅरॉमीटर २७° २७°५' और २७°५' पर था और इन्हीं समयों पर थर्मामीटर क्रमशः ७२९, ८६° और ६०° बतला रहा था। दोनों के अंशों के उतार-चढ़ाव में जो भिन्नता है उससे स्पष्ट ही है कि जिस बॅरॉमीटर पर मैं विश्वास कर रहा था वह कितना गलत था और थर्मामीटर की स्थिति से उसका कोई मेल नहीं बैठ रहा था । परन्तु इन पारिभाषिक बातों को अभी रहने दीजिए और मेरे साथ जूते उतार कर देलवाड़ा के पवित्र मन्दिरों में घुसने के लिए तैयार हो जाइये । देलवाड़ा, यह 'देवलवाड़ा' का संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ है ' देवालयों का स्थान' और इसीलिए यहाँ के अनेक मन्दिरों के इस समूह को यह नाम दिया गया है। अभी मैं इनमें से सर्वाधिक सुप्रसिद्ध मन्दिरों को ही चुनता हूँ ।
यदि पाठक सर्वप्रथम जैन तीर्थंकर वृषभदेव के मन्दिर के प्रवेश द्वार पर उपस्थित होने की कल्पना करें तो उन्हें बड़ा आनन्द आएगा । निस्सन्देह, यह भारतवर्ष के सभी मन्दिरों से उत्कृष्ट है और ताज़महल को छोड़ कर कोई भी ऐसी इमारत नहीं है जो इसकी समानता कर सके । जैनों के इस गौरवयुक्त स्मारक की समृद्धिपूर्ण सुन्दरताओं का वर्णन करने में लेखनी समर्थ नहीं है । इसको एक प्रतीव समृद्धिशाली भक्त ने बनवाया था और उसी के नाम से-न कि अन्तः प्रतिष्ठित देवता के नाम से - यह श्राज तक प्रसिद्ध है । भारतवर्ष के कोनेकोने से आकर्षित होकर यात्री यहाँ पर आते रहते हैं । विमलशाह, जो अपने इस कार्य से अमर हो गया है, अणहिलवाड़ा का व्यापारी था, जो किसी समय भारत का मुकुटमणि और जैन-धर्म का सुदृढ़ केन्द्र माना जाता था । अस्तु, यह इस नगर के सुदीर्घ कालीन प्रसिद्धियुग के अन्तिम दिनों की बात है कि जब ये दोनों इमा
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