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________________ प्रकरण-५, कुम्भा राणा का महल [१७ कहते हैं कि उसे राणा कुम्भा ने बनवाया था', जब उसको मेवाड़ के "चौरासी किलों' से निकाल दिया गया था; परन्तु वास्तव में उसने अचलगढ़ के इस मध्यगृह का, जो एकाध छोटे-मोटे भागों को छोड़ कर बहुत प्राचीन है, जीर्णोद्धार मात्र कराया था। यहीं अनाज के वे भी कोठे हैं जो कुम्भा राणा के भण्डार कहलाते हैं, इनके भीतर की तरफ बहुत मजबूत सीमेण्ट पुता हुआ है परन्तु छत गिर गई है। पास ही, बायीं तरफ उसकी रानी का महल है, जो हिन्दुओं के जगतकंट 'अोक मण्डल' [ोखा मण्डल] की होने के कारण 'पोका राणी' कहलाती थी। दुर्ग में एक छोटी सी झील भी है जिसको 'सावन-भादों' कहते हैं; जुन मास के मध्य में भी पानी से भरी रहने के कारण यह पावस के इन दोनों प्रमुख महीनों के नाम को सार्थक करती है। पूर्व की ओर सब से ऊंची टेकरी पर परमारों की भय-सूचिका बुर्ज (Alarm Tower) के खण्डहर हैं, जो अब तक कुम्भा राणा के नाम से प्रसिद्ध हैं; यहाँ से तेज़ दौड़ने वाले बादलों को यदा-कदा चीरती हुई दृष्टि उस वीर जाति की बलिवेदी और महलों पर पड़ती है जिसने उस स्थल पर, जहाँ से मैंने निरीक्षण किया था, यात्मरक्षा के लिए अपना खून बहाया था। मुझे अन्तिम चौहान की सुन्दरी स्त्री इच्छिनी (Echinie) के वीर और बुद्धिमान् भाई लक्षण [लक्ष्मण ? ] २ की याद आई जिसका नाम उसके स्वामी के साथ दिल्ली के स्तूप पर अंकित है। लक्षण का नाम अमर हो ! सभी खाँपों के राजपूत अाज सात शताब्दियों बाद भी उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हैं और पश्चिम से प्राया हुआ वीरतापूर्ण कार्यों का प्रशंसक परदेशी भी देश एवं जलवायु के भेद-भाव को भूल कर उस वीर के यशोगान को अमर करने का प्रयत्न करता है, जिसकी गाथा को चन्द (बरदाई) ने गीतबद्ध कर दिया है तथा जिसकी याद इन काई से ढंके हुए खण्डहरों को देख कर हरी हो जाती है । ऐसे स्थल पर कोई भी [यात्री] हमारे प्रथम पुरातत्त्वज्ञ' के शब्दों में कह उठेगा, "इन भग्नावशेषों के ढेरों के बीच में खड़े हो कर किसका मन भारी (दखी) १ महाराणा कुम्भा ने १४५२ ई० (वि० सं० १५०६) में माघ सुदि १५ को अचलगढ़ के __किले का निर्माण कराया था।-Maharana Kumbha; Harbilas Sarda, p. 121 २ सम्भवतः ग्रन्थकार का तात्पर्य परमार सलख जैत्र के पुत्र लक्ष्मण से है। सलख जैत्र इच्छिनी का पिता था। -पृथ्वीराज रासो भा० १; साहित्य संस्थान, राजस्थान विश्वविद्यापीठ, उदयपुर; पृ० १२ टि०; पृ० ३०१ 3 यहां ग्रन्थकार का प्राशय किस पुरातत्त्वज्ञ से है, यह ज्ञात नहीं हो सका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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