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________________ प्रकरण ३; भीलों के अन्ध विश्वास [ ३६ प्रमाण मान लिया जाय । भील अपने स्थान ( घर ) पर उसी प्रकार लौट कर वापस श्रा जाता है जैसे कुतुबनुमा यंत्र की सूई उत्तर दिशा पर । उसके दिमाग में किसी अन्य प्रदेश में जा कर बसने का विचार ही नहीं श्राता है । इनके नामों से भी इस मत की पुष्टि होती है जैसे वनपुत्र, वन का पुत्र, मेरोत, पर्वत से पैदा हुआ ' ; गोविन्द, जो गोप और इन्द्र मिल कर बना है, का अर्थ है गुफा का स्वामी [ ? ]; पाल-इन्द्र, घाटी का स्वामी । इसी प्रकार 'को' (पर्वत) शब्द से बने हुए 'कोल' का अर्थ है - 'पहाड़ पर रहने वाला' यद्यपि यह 'को' शब्द संस्कृत के 'गिर' [ गिरि ? ] शब्द की अपेक्षा बहुत कम व्यवहृत होता है फिर भी इसमें सन्देह नहीं कि यह शब्द इन्डोसीथिक जाति मूल धातु से बना है | भीलों में पुरोहिताई का कोई सिलसिला न होने के कारण वे बळाइयों के गुरु को ही अपना गुरु मानते हैं, जो शूद्रों में बहुत नीची जाति का होता है । किसी भी विवाह के अवसर पर वह गुरु अपने आप ब्राह्मण का जनेऊ पहन लेता है और इस चिह्न को लेकर ब्राह्मण बन जाता है । परन्तु इस अवसर पर बने हुए भोजन में और [शराब के] प्याले में, जिसका दौर बराबर चलता रहता है, वह अवश्य भाग लेता है । ऐसे प्रत्येक अवसर पर लूट का दृश्य उपस्थित होता है और पूर्ण कलह के साथ ही उसकी समाप्ति होती है । वधू के साथ कितना भी 'डायजा' (दहेज) मिले, परन्तु वर के लिए यह आवश्यक है. कि वह पिता को विवाह की दावत के निमित्त एक भैंस, बारह रुपए और दो शराब की बोतलें भेंट करे । जन्म के अवसर पर वही अपने आप बना हुआ ब्राह्मण उस ( नवजात ) बच्चे का नामकरण करता है । प्रायः उस बच्चे का नाम उस देवता पर रखा जाता है जो उसके जन्म दिन का स्वामी होता है, जैसे बुधवार को पैदा हुआ तो बुध, बच्ची हुई तो बुधिया । जन्म तथा मौत के अवसर पर रस्म में भाग लेने के लिए एक और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति बुलाया जाता है जो कामड़ा या गायक कहलाता है । ये लोग प्रत्येक बड़े गांव में एक-एक रहते हैं । वह जोगी या त्रैरागी के वेश में रहता है और कबरी [कबीर ?] पन्थ के गूढ सिद्धान्तों में दीक्षित होना उसके लिए आवश्यक है इसीलिए वह कामड़ा जोगी या कबीरपन्थी भी कहलाता है। जन्म के अवसर पर वह अपनी स्त्री के साथ आता है और पहली देहली के पास एक घोड़े की मूर्ति रख कर तम्बूरा लिए दरवाजे पर आसन ग्रहण करता १ मेरु-पुत्र | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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