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पश्चिमी भारत की यात्रा भारत की पिछड़ी जातियों भील, कोली, गौंड, मीणा और मेर आदि के विषय में गहरी छान-बीन करने से मानव के भौतिक इतिहास को बहत सी महत्त्वपूर्ण कड़ियां मिल जाती हैं। परिगणित जातियों में भी चेहरे-मोहरे और अनुकरण एवं स्थान-भेद के कारण उत्पन्न हुई स्वभाव, विश्वास एवं रीतिरिवाजों की बड़ी-बड़ी भिन्नताएं देखने में आती हैं, यद्यपि मौलिकता की छाप सभी में समान रूप से मौजूद रहती है फिर भी गुण और स्वभाव इतने भिन्न हैं कि हमें एक ही महान् वंश से उनका निकास मानने का विचार छोड़ देना पड़ता है। नाटे, चपटी नाक वाले और तातारी मुखाकृतियुक्त एस्कीमो तथा प्राचीन एवं महान् मोहिकन' (Mohican) में और मेवाड़ के भील तथा सिरगूजर के कोली में कोई बड़ा अन्त नहीं है, और ध्रुवदेशीय समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों तथा मसूरी की घुमन्तू जातियों में उतनी ही भिन्नता है जितनी कि हमारे वनों के आदिवासियों और पूरे घुमक्कड़ राजपूतों में । यदि कभी आदमी जमीन में से कुकुरमुत्ते के पौधे की तरह अपने आप निकल पड़ा होगा तो यह कहा जा सकता है कि भारत के ये छत्रक (कुकुरमुत्ते के पौधे) अपने पहाड़ी जंगलों की चट्टानों और पेड़ों की तरह अभी तक उन्हीं स्थानों पर जमे हुए हैं जहाँ वे सर्वप्रथम उत्पन्न हुए थे। संचरणशील अङ्गों का नितान्त प्रभाव और दुर्जेय स्वाभाविक लापरवाही ही ऐसे गुण हैं जिनमें उस श्रमशीलता के एक अंश के भी दर्शन नहीं होते कि जिसके द्वारा घुमन्तूपन की कठिनाइयों का वीरता से । सामना किया जाता है और इन्हीं अभावों के कारण हमारा यह विचार दूर चला जाता है कि ये लोग कहीं और देश में उत्पन्न हुए होंगे वरन् हम (Monboddo Theory) मोननोडो सिद्धान्त' की ओर आकर्षित होते हैं कि ये लोग दुमदार जाति के ही सुधरे. हुए रूप हैं । मैं इस बात को नहीं मानता कि लूट-पाट करने के लिए अपने जंगली घरों से निकल कर इधर-उधर हमले करते रहने मात्र को उनकी एकदेशिता के मूलभूत सिद्धान्त के विरुद्ध कोई
' उत्तर-अमरीकी इण्डियन । २ Lord James Burnett Monboddoस्कॉटलैण्ड का रहने वाला था। न्याय विभाग में जज होते हुए भी वह नृवंशशास्त्र और प्राचीन भौतिकशास्त्र का अध्येता था। उसका मत है कि मनुष्य अपने आप जानवर की दशा से एक स्वतंत्र प्राणी के रूप में क्रमशः विकसित हुआ है और उसका मस्तिष्क इतना क्रियाशील हो गया कि उसकी गति शरीर तक ही सीमित नहीं रही। 'Ancient Metaphysics' और 'the Origin and Progress of Language' उसके लिखे दो विशाल ग्रन्थ हैं। उसकी मृत्यु १७९३ ई० में हुई।-Encyclopaedia Britannica, I938, p. 690
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