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सञ्चालकीय वक्तव्य
१८३६ ई० में, उसका यह यात्रा-विवरण प्रकाशित हुआ। 'राजस्थान का इतिहास' का प्रकाशन वह अपने सम्मुख कर पाया था जिससे उसके अन्तर को बड़ा सन्तोष हो रहा था पर इस यात्रा-विवरण के प्रकाशन को, जिसके लिये उसने अत्यधिक कष्ट उठाये और अनेक मनोरथ बनाये थे, वह अपनी आंखों से देख नहीं पाया।
राजस्थान के जनजीवन का परमहितैषी, राजस्थान को प्राचीन संस्कृति के परम प्रशंसक और राजस्थान के अतीत के इतिहास के परम शोधक और महान् लेखक महामना कर्नल टॉड के जीवन के मुख्य-मुख्य प्रसंगों की यह केवल सूचना मात्र है। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रारंभ में 'ग्रन्थकर्ता विषयक संस्मरण' नामक जो प्रबन्ध दिया गया है उसके पढ़ने से पाठकों को उसके जीवन के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होगी ही।
उसका लिखा हुआ महान् ग्रन्थ 'राजस्थान का इतिहास' संसार में सुप्रसिद्ध है । जब से वह ग्रन्थ प्रसिद्ध हुआ तभी से वह भारत के कोने-कोने में पढ़ा जाने लगा और भारत की अनेक प्रसिद्ध भाषाओं में उसके अनुवाद, सार, समुद्धार प्रादि प्रकाशित होते रहे हैं । बंगाल में तो वह इतना लोकप्रिय और प्रेरणादायी हुआ कि उसकी अनेक बहुत सस्ती प्रावृत्तियां निकल चुकी हैं। बंगाल के अनेक उपन्यासकार, नाटककार, और कथाकार लेखकों के लिये तो वह राष्ट्रप्रेम, धर्मप्रेम और वीर-शौर्य के भावों से भरा हुआ एक महान् निधिरूप ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ में उल्लिखित तथा प्रतिपादित ऐतिह्य तथ्यों के विषय में, इसके प्रकाशन के प्रारम्भकाल से लेकर आज तक अनेकानेक विद्वानों, शोधकों, आलोचकों आदि ने भिन्न-भिन्न प्रकार के मत व्यक्त किये हैं, नाना प्रकार की टिप्पणियां लिखी हैं और आज भी वह क्रम चालू है । बस यही एक बात इस ग्रन्थ को विशिष्टता, लोकप्रियता और प्रेरणात्मकता सिद्ध करने में पर्याप्त है। इतिहास-लेखन में उपयुक्त जिस प्रकार की साधन-सामग्री और शास्त्रीय पद्धति का
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