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प्रकरण - २; प्ररावली की महिमा
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उसी की तरह, परिश्रम का-यदि इसे परिश्रम कहें---फल भी अवश्य मिल जाता था क्योंकि प्रकृति की शानदार और विचित्र कारोगरियों के कारण दिमाग में एक उत्साहपूर्ण हलचल लगातार बनी रहती थी। __इस रास्ते को एक हो मंज़िल में तय करने से आदमियों और जानवरों दोनों ही को परेशानी हुए बिना न रहती, इसलिए हम नाळ के बीचोंबोच एक सुन्दर से हरे-भरे स्थान पर, जहाँ मेरे छोटे से डेरे के लिए पर्याप्त स्थान मिल गया था, एक स्वच्छ पानी के झरने के किनारे बनास के उद्गम के समीप ठहर गए; यह झरना बनास के निकास के पास से निकल कर पहाड़ के पश्चिमी ढाल पर टेढ़े-मेढ़ मार्ग से वह कर मारवाड़ प्रांत में होता हुआ जालोर के पास लनी या 'खारी' नदी में मिल जाता है । यद्यपि कहीं-कहीं ऐसे छोटे और प्राकर्षक स्थानों पर रास्ता चोड़ा हो गया है परंतु इस पूरी घाटी को एक नाळ ही कहना पड़ेगा क्योंकि इसकी चौड़ाई प्रायः बहुत कम है और एक स्थान पर तो डेढ़ मील की लम्बाई में यह इतनी तंग हो गई है कि केवल कुछ मुट्ठी भर अादमी ही शत्रुओं का सामना कर सकते हैं, जहां उनको यह अाशंका भी न होगी कि यहाँ चारों ओर घने जङ्गलों और घाटियों से घिर कर उनकी सेना को लौटना पड़ेगा । इस ऐश्वर्ययुक्त उत्तम स्थान को देखते ही हमें उस रहस्य का पता चल जाता है कि यहाँ के राणा मुसलमान अाक्रमणकारियों का सुदीर्घकाल तक कैसे सफलतापूर्वक सामना कर सके थे। इस स्थान पर सभी कुछ महान्, सुन्दर और प्राकृतिक था-मानो प्रकृति ने इसको अपनी प्रिय संतान के नित्य-विहार के निमित्त ही बनाया हो, जहाँ दृश्य को शांति एवं अनुरूपता में बाधा डालने वाले मानवीय विकारों के लिए कभी कोई अवसर नहीं था । आकाश निर्मल था, धनी पत्रावली में से एक दूसरी का प्रत्युत्तर देती हुई कोयलों की कूकें सुनाई पड़ रही थीं, सूर्य का प्रकाश पहुँचते ही बाँस की कुजों में छुपे हुए वनकुक्कुट प्रातःकालीन बाँग देने लगे थे, वृक्षों पर घोंसलों में बैठे हुए भूरे तीतरों के झुण्ड हर्ष-प्रदर्शन में पंडुको से होड़ लगा रहे थे और पहाड़ी चट्टानों पर तेजी से फैलती हई प्रखर रविरश्मियाँ उन्हें पालोकित कर रही थीं। अन्य गैर-मैदानी पक्षी भी इधर उधर उड़ रहे थे और कठफोड़े की आवाज उस कठिन धरातल से टकरा-टकरा कर प्रतिध्वनित हो रही थी जिस पर वह अपनी चोंच से चोटें मार रहा था। भाँति-भाँति के फल और रंग-बिरंगे फूल वन के सभी द्विपदों, चतुष्पदों, पक्षियों और परिश्रमशील मधुमक्खियों को, जो विशाल वृक्षों पर चढ़ी हुई सफेद एवं पीली चमेली के मधुरतम मधु का पान करने में सक्षम थीं, आमन्त्रित कर रहे थे। काम्बीर' और 'कानोमा' के लाल और सफेद फलों के
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