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________________ [५] पुत्रस्तस्य कुमारपालनृपतिप्रीतेः पदं धीमता मुत्तंसः कविचक्रमस्तकमणिः श्रीसिद्धपालोऽभवत् । तृप्तं तद्वसताविदं किमपि यच्चायुक्तमुक्तं मया तद् युष्माभिरिहोच्यतामिति बुधावः पाञ्जलिःप्रार्थये। इस ग्रन्थ में, अन्दर भी दो चार जगह सिद्धपाल का उल्लेख किया हुआ है और कुछ उस के पद्य भी उद्धृत किये गये हैं। कुमारपाल, एक दफह गिरनारतीर्थ की यात्रा करने के लिये बहुत बड़ा संघ ले कर गया था। साथ में हेमचन्द्राचार्य भी थे। उस समय राजा की अवस्था वृद्ध थी और पहाड की चढाई बडी सख्त थी; इस लिये कुमारपाल पर्वत के ऊपर नहीं चढ सका और वहां के जैन मंदिरों की यात्रा न कर सका । राजा को इस का बडा खेद हुआ । जब वह यात्रा से लौट कर वापस राजधानी पाटण में आया तब उसने अपने दरबार में यह प्रस्ताव किया कि,* गिरनार ऊपर जाने के लिये सुगम ऐसा मार्ग बनवाने के लिये कोई समर्थ है ? तब सिद्धपाल ने एक पद्य द्वारा प्रसंशा करते हुए सेनापति आम्र का नाम प्रकट किया । पद्य यह है प्रष्ठा वाचि प्रतिष्ठा जिनगुरुचरणाम्भोजभक्तिर्गरिष्ठा ..... श्रेष्ठाऽनुष्ठाननिष्ठा विषयसुखरसास्वादसक्तिस्तवनिष्ठा । । बंहिष्ठा त्यागलीला स्वमतपरमतालोचने यस्य काष्ठा धीमानाम्रः स पद्यां रचयितुमचिरादुजयन्ते नदीष्णः॥ * जंपइ सहा-निसन्नो सुगमं पजं गिरिम्म उजिते । - को कारविर्ड सक्को ?, तो भणिओ सिद्धवालेण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003432
Book TitleDropadiswayamvaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1928
Total Pages52
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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