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________________ [१८] रपाल ने एक मजबूत प्राकार (किला कोट) बनवाया था। इस प्राकार के वर्णन और स्मरणार्थ यह प्रशस्ति कविराज ने बनाई थी। कवि के कवित्व की प्रसादी आज हमें केवल इसी प्रशस्ति के कारण मिल सकती है । नमूने के लिये कुछ पद्य लीजिए अस्मिन्नागरवंशजद्विजजनत्राणं करोत्यध्वरे ___ रक्षां शान्तिकपौष्टिकैर्वितनुते भूपस्य राष्ट्रस्य च । मा भूत्तस्य तथापि तीव्रतपसो बाधेति भक्त्या नृपो वमं विप्रपुराभिरक्षणकृते निर्मापयामास सः ॥ कामं कामसमृद्धिपूरकरमारामाभिरामाः सदा . स्वच्छन्दस्वनतत्परैर्द्विजकुलैरत्यन्तवाचालिताः । उत्सर्पद्गुणशालिवप्रवलयप्रीतैः प्रसन्ना जनैरत्रान्तश्च बहिश्च संपति भुवः शोभाद्भुतं विभ्रति ॥ यावत्पृथ्वी पृथुविरचिताशेषभूभृन्निवेशा यावत्कीर्तिः सगरनृपतोर्वद्यते सागरोऽयम् । तावनन्धाद्विजवरमहास्थानरक्षानिदानं श्रीचौलुक्यक्षितिपतियश कीर्तनं वा एषः ॥ एकाहनिष्पन्नमहाप्रबन्धः श्रीसिद्धराजप्रतिपन्नबन्धुः। श्रीपालनामा कविचक्रवर्ती प्रशस्तिमेतामकरोत्प्रशस्ताम् ॥ इस की रचनाओं में के कोई कोई पद्य प्रासादिक काव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003432
Book TitleDropadiswayamvaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1928
Total Pages52
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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