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________________ मगर कुछ ही देर के बाद उसका प्रसुप्त मन जाग उठा । सम्पूर्ण राज्य मांगने का इरादा करते ही उसकी चेतना में प्रकाश का उदय हुआ । सुवर्ण का चिन्तन, आत्म-चिन्तन हो गया । कपिल सोचने लगा- किसी भले आदमी ने देने का कह दिया है, तो क्या उसका सर्वस्व हड़प लेना उचित है ? किसी ने अंगुली पकड़ने का कह दिया, तो क्या उसका हाथ ही उखाड़ लेना चाहिए ? किसी की उदारता का अनुचित लाभ उठाना भी ठीक नहीं है । और, कपिल विचारों की गहराई में उतर गया । देर होने के कारण राजा सशंकित हो उठा । उसने सोचा- यह गहरे विचार में पड़ गया है, कहीं राजगद्दी न मांग बैठे । अतएव राजा ने कहा- जो मांगना हो, जल्दी मांग लो। ज्यों ही कपिल ने आँखें खोलीं, राजा | मनुष्य के मन की की आँखों में घबराहट दिखाई दी । कपिल तृष्णा अनन्त है । समझ गया- मेरी तृष्णा से राजा भयभीत हो रहा है । अगर मैंने अपनी तृष्णा व्यक्त कर इच्छा वह भनिन है दी. तो राजा के प्राण-पंखेरु उड़ जाएंगे । जिसे शान्त करने कपिल की विचारधारा पलट कर एकदम | के लिए ज्यों-ज्यों विरुद्ध दिशा में चली गई । उसने सोचा- ईंधन डाला जाता जहा लाहो तहा लोहो। है, त्यों-त्यों वह लोभ नहीं था, वह आ गया और | बढ़ती ही चली जाती है । बढ़ गया । और बढ़ता ही जा रहा है । मुझे दो माशे सोने से मतलब था । मगर राजा ने 'जो कुछ इच्छा हो मांग लो' कह दिया तो, इच्छा बलवती हो उठी, और 78
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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