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________________ हो जाते हैं । आप चाहें कि एक दूसरे को धोखा भी दें और मित्रता भी बनाये रखें, तो | मनुष्य की आसक्ति यह नहीं हो सकता । कोई एक फैसला | __ही मनुष्यता के करना होगा । या तो सरल-भाव कायम रख | टुकड़े-टुकड़े कर देती लो या छल-कपट ही कर लो ! जहाँ | है तथा जीवन की छल-कपट रहेगा, वहाँ मित्रता कायम नहीं अच्छाइयों की हत्या रह सकती । छल से बल टूट जाता है। कर डालती है। जब लोभ की बारी आई तो भगवान् विराट् होने में ही कहते हैं- लोभ सबका नाश कर डालता है । अन्य अवगुण तो एक-एक गुण का | सुख है, शान्ति है। नाश करते हैं; किन्तु लोभ सभी गुणों का नाश करता है । लोभ के जागृत होने पर न प्रेम रहता है, न विनय, न शिष्टता ही रहती है । लोभी एक-एक कौड़ी के लिये दूसरों का तिरस्कार करने लगता है । लोभ से मित्रता का भी नाश हो जाता है । इस प्रकार मनुष्य की आसक्ति ही मनुष्यता के टुकड़े-टुकड़े कर देती है तथा जीवन की अच्छाइयों की हत्या कर डालती है । लोभ की मौजूदगी में, जीवन में जो विराट् भावना आनी चाहिए, वह नहीं आ पाती । मनुष्य जितना क्षुद्र होता जाता है, विनाश की ओर जाता है और जितना विशाल बनता जाता है, उतना ही कल्याण की ओर बढ़ता जाता है । विराट् होने में ही सुख है, शान्ति है। लोभ की यही भूमिका है । लोभ से मनुष्य कभी शान्ति का अनुभव नहीं कर पाता । मनुष्य आज तक क्या करता आया है ? वह लोभ को शान्त करने के लिए लोभ करता रहा है। इसका अर्थ यही तो 72
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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