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___अभिप्राय यह है, कि जब तक परिग्रह की वृत्ति अन्दर में कम नहीं हो जाती, तब तक संसार की अशान्ति कदापि दूर नहीं हो सकती । जब तक प्रत्येक राष्ट्र परिग्रह-परिमाण की नीति को नहीं अपनाएगा, तब तक खून की होली खेलता ही रहेगा ।
भगवान् महावीर ने और दूसरे महापुरुषों ने किसी समय सच ही कहा था कि परिग्रह ही अशान्ति का मूल है और अपरिग्रह ही शान्ति का मूल है । दशवैकालिक सूत्र के अध्ययन 8 में कहा है
कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणय-नासणो।
माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सब्ब-विणासणो।। क्रोध आता है, तो प्रेम का नाश करता है । वह प्रीति नहीं रहने देता, उसकी हत्या कर देता है । अभिमान के जागने पर विनम्रता और शिष्टता चली जाती है । गुणीजनों के प्रति आदरभाव समाप्त हो जाता
- है, और मनुष्य दूँठ की तरह खड़ा रहता
_ है । अभिमान आने पर, पत्थर का टुकड़ा परिग्रह ही अशान्ति
| चाहे झुके, पर मनुष्य नहीं झुकता । मायाचार का मूल है और
या छल-कपट मित्रता को नष्ट कर देता है । अपरिग्रह ही शान्ति
परिवारों में जब तक सरलता का भाव रहता का मूल है।
| है, वे एक दूसरे के हृदय को जानते रहते जहाँ छल-कपट हैं । उनका जीवन खुली हुई पुस्तक के समान रहेगा, वहाँ मित्रता
रहता है । वहाँ निष्कपट मित्रता गहरी होती कायम नहीं रह
जाती है, और जीवन का उल्लास तथा आनन्द सकती।
बना रहता है; किन्तु जब उनमें छल-कपट पैदा हो जाता है, तब मित्रता के टुकड़े-टुकड़े
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