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न करे, अपनी इच्छाओं को ही अपने जीवन की आवश्यकता समझ कर उनके पीछे-पीछे न भटके, यही 'इच्छा-परिमाण' या 'परिग्रह-परिमाण व्रत' का उद्देश्य है, और जो इस व्रत को अंगीकार करता है, वह आनन्द की भाँति आनन्द का अधिकारी होता है ।
ब्यावर (अजमेर) दि. 16.11.50
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