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कहा जा सकता है कि अपने भाइयों का हार और हाथी लेने की इच्छा अपने आप कोणिक के मन में उत्पन्न नहीं हुई थी। वह तो उसकी पत्नी के द्वारा उत्पन्न की गई थी; मगर चाहे कोई स्वयं आग में कूद पड़े या किसी के कहने से आग में कूदे, नतीजा तो एक समान ही होगा । हर हालत में उसे झुलसना पड़ेगा। हार और हाथी को हथिया लेने की हविस चाहे स्वयं पैदा हुई, चाहे रानी के कहने से पैदा हुई, यह अपने आप में कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है । तथ्य यह है कि कोणिक के दिल में वह इच्छा उत्पन्न हुई और एक दिन कोणिक ने उनसे कहा- अपना हार और हाथी मुझे दे दो । ये दोनों राज्य के रत्न हैं । भाइयों ने उत्तर दिया- हमें राज्य का कोई हिस्सा नहीं मिला है और उसके बदले में ये दो चीजें मिली हैं । ये लेनी हैं तो राज्य का हिस्सा दे दो ।
कोणिक ने कहा- राज्य मुझे मिला नहीं है । मैंने उसे पाया है । इसमें से कुछ नहीं मिलेगा । मुझे हार और हाथी दे दो।
जब यह वृत्ति जागती है कि देने को 6
| कुछ नहीं है, किन्तु लेने को सब कुछ है, तो जब यह वृत्ति तीखी तलवारें बाहर आने से पहले ही मन में जागती है, कि देने |
खिच जाती हैं ! और जब वह बाहर आ को कुछ नहीं है,
| जाती है तो घमासान मच जाता है ! तृष्णा में किन्तु लेने को सब | से ज्वाला निकलती है । कुछ है, तो तीखी तलवारें बाहर आने
। तो कोणिक ने इस घटना को लेकर से पहले ही मन में
अपने भाइयों के आश्रयदाता अपने नाना के फिर जाती हैं ! |
साथ अनेक अत्याचार किये और अनेकों का 6 खून बहाया ।
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