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________________ में आज तक सुरक्षित है, और इतना महान् है, कि प्रत्येक राजनीतिज्ञ के लिए पढ़ने और गुनने की चीज है । जीवन को कैसे चलाना है, और कैसा बनाना है ? इस सम्बन्ध में कृष्ण ने अपने उस भाषण में बहुत कुछ कहा है । वे कहते हैं- "मैं चाहता हूँ कि पाण्डव भी सुरक्षित रहे और दुर्योधन भी सुरक्षित रहे और कौरवों का जीवन भी महान् बने । यह सोने के महल गिरने के लिये नहीं हैं । अगर मेरी बात पर कान न दिया गया और रक्त की नदियाँ बहीं, जीवन में ही भाई से भाई जुदा हुए, आपस में एक-दूसरे के गले काटे गए, तो मैं समझता हूँ कि जितना उनका खून बहेगा, उससे अधिक मेरी आँखों से आँसू बहेंगे । दुर्योधन ! यदि तुम पाण्डवों को ज्यादा नहीं दे सकते हो, तो केवल पाँच गाँव ही दे दो । पाँच गाँवों से भी पाँच पाण्डव अपना जीवन चला लेंगे । ” संसार में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ भी देखने में आती हैं ! जिस साम्राज्य को बढ़ाने के लिए पाण्डवों ने दुनियाँ भर से टक्करें ली थीं, और तब कहीं वह साम्राज्य बन पाया था, आज वे उसी साम्राज्य में से पाँच ही गाँव लेने की तैयार हैं । वे इतने से ही अपना काम चला लेंगे, अपना जीवन निभा लेंगे और उन्हें ज्यादा कुछ नहीं चाहिए । | इस प्रकार एक तरफ इच्छाओं को रोकने की सीमा आ गई । जो पाण्डव सोने के महलों में रहते थे, वे आज झौंपड़ी में रहने को तैयार हो गए । और दूसरी तरफ वे असीमित इच्छाएँ हैं कि अपना साम्राज्य तो था ही, दूसरों का भी साम्राज्य मिल गया फिर भी उन इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाई ! वास्तव में परिग्रह का भूत जब जिसके सिर पर सवार हो जाता 46
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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