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इच्छा-परिमाण का महान् रूप उसके जीवन में उतरा । अपनी इच्छाओं को परिमित कर लिया ।
आज दुनियाँ में जो संघर्ष है, वह संघर्ष आज से ही नहीं है अनन्त-अनन्त काल से चला आ रहा है। अगर उसके मूल को खोजने चलें, तो पता लगेगा कि इच्छाओं की बहुलता ही उसका प्रधान कारण है। संसार में जो महायुद्ध हुए हैं, सम्भव है उनके कुछ कारण और भी हों, परन्तु प्रधान कारण तो मनुष्य की असीम इच्छाएँ ही हैं ।
मनुष्य की इच्छाओं के असीमित रूप ने लाखों और करोड़ों मनुष्यों का रक्त बहाया है । जब मनुष्य ने आवश्यकता से अधिक पैर फैलाने की कोशिश की, तभी संघर्ष का बीजारोपण हुआ और जब पैर फैलाये तो |
6 संघर्ष शुरु हो गया । जिनके पास थोड़े | मनष्य की इच्छाओं साधन हैं और थोड़ी शक्ति है, उनका संघर्ष के असीमित रुप ने भी छोटे पैमाने पर होता है और उसका लाखों और करोड़ों दायरा भी सीमित होता है । किन्तु जो |
मनुष्यों का रक्त शक्तिशाली है, उनका संघर्ष सीमा को लाँघ
बहाया है । जाता है और कभी-कभी वह विश्वव्यापी रूप
6 भी धारण कर लेता है । महाभारत का युद्ध क्यों हुआ ? जिस युद्ध की विकराल ज्वालाओं में भारत के चुनिंदा योद्धा पतंगों की तरह भस्म हो गए, जिसने भारत में घोर अन्धकार फैला दिया, जिसकी बदौलत देश श्मशान बन गया और शताब्दियों पर शताब्दियाँ बीत जाने पर भी न संभल सका और जिस युद्ध की ज्वालाओं में भारत की संस्कृति, वीरता, ओज और तेज सभी कुछ भस्म हो गया, उस भीषण युद्ध का कारण इच्छाओं का असीमित रूप ही तो था ।
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