________________
साम्प्रदायिक आग्रहों एवं विचारों की हो, साम्प्रदायिक व्यामोह की हो, शिष्य-शिष्याओं की हो या और किसी तरह की हो- सब परिग्रह है, जीवन के लिये बोझ है, भार है, जीवन-नौका को संसार-सागर में डुबाने वाली है।
____ अनासक्ति की साधना ही अपरिग्रह की साधना है । अपरिग्रह की ओर कदम बढ़ाने के लिये सबसे पहली शर्त धन-सम्पत्ति के त्याग की नहीं, आसक्ति के त्याग की है । इच्छाओं, आकांक्षाओं पर काबू पाने वाला व्यक्ति ही अपरिग्रह के पथ पर चल सकता है। उसके लिये यह प्रतिबन्ध नहीं है कि वह वस्तु का उपयोग ही न करे । परन्तु वह अपने जीवन में सदा यह विवेक रखे कि आवश्यकता से अधिक किसी वस्तु का उपयोग न करे । मान लो, वर्ष में पाँच सूट पर्याप्त हैं, फिर भी अपनी आकांक्षा की भूख को मिटाने के लिये विभिन्न रंग एवं डिजायन के अनेक सूट इकट्ठे कर रखे हैं और किये जा रहे हैं, तो यह अनावश्यक संग्रह परिग्रह है, पाप है । वस्त्र-पात्र तथा रहन-सहन एवं खान-पान के साधन जीवन के लिये आवश्यक हैं । परन्तु इतना संग्रह न हो, कि वह आवश्यकता की अक्षांश रेखा को ही लांघ जाये । एक ओर आपकी पेटियों में बन्द पड़े वस्त्र दीमकों की खाद्य सामग्री बन रहे हों और दूसरी ओर उनके अभाव के कारण अनेक व्यक्ति सर्दी में ठिठुर रहे हों । एक ओर आप आवश्यकता से अधिक खा-खाकर अजीर्ण एवं अन्य रोगों से पीड़ित हो रहे हों और दूसरी ओर अन्नाभाव से अनेक व्यक्ति मर रहे हों । अपरिग्रही
6 व्यक्ति के लिये इसका विवेक रखना अनिवार्य
विषमता एवं है। वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि जिससे
संघर्ष की जड़परिवार, समाज एवं देश में असमानता, विषमता
इच्छा है। का विष फैले ।
25