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स्वार्थ-साधना नरक है । स्वार्थ-त्याग स्वर्ग है । जब इन्सान अपने ही स्वार्थ को साधने का प्रयत्न करता है, तो वह अपने लिए और अन्य व्यक्तियों के लिए-जो उसके स्वार्थ से सम्बद्ध और प्रभावित हैं, दुःख का कारण बन जाता है । वह उस समय यह भूल जाता है कि मेरी तरह दूसरे के भी अपने स्वार्थ हैं, हित हैं, उनकी सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है। इसी कारण एक विचारक ने कहा है- 'Self is blind, without judgment, not possessed of true knowledge and always leads to suffering.'
स्वार्थ अन्धा होता है । सच्चे ज्ञान एवं यथार्थ निर्णय करने की शक्ति का अभाव मनुष्य अपने स्वार्थ होने के कारण वह सदा मनुष्य को दुःखों के को भूलकर निस्वार्थ सागर में धकेलता है । जब मनुष्य अपने भाव से अपना प्यार स्वार्थ को भूलकर दूसरे के हित की सुरक्षा में | दूसरों को देने । लग जाता है, जब निःस्वार्थ भाव से अपना | लगता है, तब उसे प्यार दूसरों को देने लगता है, तब उसे सच्चा | सुख और आनन्द मिलता है । आनन्द ही आनन्द मिलता है। नहीं मिलता, बल्कि वह सदा-सर्वदा के लिए अमर हो जाता है । मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ एवं सच्चे आनन्द की अनुभूति तब होती है, जब वह दया एवं निःस्वार्थ प्रेम से आप्लावित शब्दों का दूसरे के हित के लिए प्रयोग करता है या दूसरे को
1. The heart that bas reached utter self-forgetfulness in its love for
others has not only become possessed of the highest happiness, but has entered into immorality, for it has realized the Divine.
___-James Allen 2. you will find that the moment of supermost happiness were those
in which you uttered some word or performed some act of compassion or self-denying love.
- Ibid
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