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साम्प्रदायिक आदि भेद विकल्पों को महावीर ने औपाधिक बताया, स्वाभाविक नहीं ।
इस प्रकार भगवान् महावीर ने मानव चेतना को वैचारिक परिग्रह से भी मुक्त कर उसे विशुद्ध अपरिग्रह भाव पर प्रतिष्ठित किया । अपरिग्रह की व्यापक परिभाषा की ।
भगवान् महावीर के अपरिग्रहवादी चिन्तन की पाँच फलश्रुतियाँ आज हमारे समक्ष हैं, जो इस प्रकार हैं
1. इच्छाओं का नियम ।
2. समाजोपयोगी साधनों के स्वामित्व का विसर्जन ।
3. शोषण - मुक्त समाज की स्थापना ।
4. निष्कामबुद्धि से अपने साधनों का जनहित में संविभाग-दान । 5. आध्यात्मिक-शुद्धि ।
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मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छंति सुग्गई ।
• दशवैकालिक सूत्र
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