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________________ रखता है, वह भी परिग्रही है ।" जैसे अनावश्यक पदार्थ की शान्ति को भंग करते हैं, वैसे निरुपयोगी एवं निम्न स्तर के विचार भी उसकी शान्ति का अपहरण करते हैं । उसके जीवन में विकारों को जन्म देते हैं । अतः साधक को अपने दिमाग को सदा स्वस्थ रखना चाहिए । उसे व्यर्थ के कलह - कदाग्रहों एवं वासनामय विचारों के कूड़े-करकट से नहीं भरना चाहिए । क्योंकि आवश्यक पदार्थ एवं स्वस्थ, सभ्य और ऊँचे विचार ही मनुष्य की सम्पत्ति है । अतः इच्छाओं का परित्याग करके आवश्यकताओं को सीमित करना ही वास्तव में सच्ची सम्पत्ति है । क्योंकि इससे सन्तोष - भाव का विकास होता है और यही सच्चा सुख है I किसी मनुष्य के मन 13 किसी जो मनुष्य अपने दिमाग में निरर्थक ज्ञान हँस रखता है, वह भी परिग्रही है। किसी Wealth consists in having great possessions, but in having few wants. - Epictatus
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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