SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज के युग में समाज की बड़ी चर्चा है । कुछ लोग समाजवाद के नाम से भयभीत रहते हैं, वे यह सोचते हैं कि यदि समाजवाद आ गया तो हमारा विनाश हो जायेगा । विनाश का अर्थ है- उनकी सम्पत्ति का उनके हाथों से निकल जाना । क्योंकि समाजवाद में सम्पत्ति और सत्ता व्यक्ति की न रहकर, समाज की हो जाती है । यह सब कुछ होने पर भी कितने आश्चर्य की बात है कि आज संसार में सर्वत्र कहीं कम तो कहीं अधिक समाजवाद का प्रसार और प्रचार बढ़ रहा है । इस वर्तमान युग में समाजवाद, लोकतंत्रवाद, साम्यवाद का ही प्रभुत्व होता जा रहा है। समाजवाद के विषय में परस्पर विरोधी इतनी विभिन्न धारणाएँ है कि समाजवाद वर्ग विभिन्न दलों में विभक्त है । कौन समाजवादी है और कौन नहीं ? यह कहना कठिन है। मेरे विचार में समाजवाद एक सिद्धान्त है और एक राजनैतिक आन्दोलन के रूप मे प्रकट हुआ है । किन्तु यथार्थ में वह राजनीति का ही सिद्धान्त नहीं है, बल्कि उसका अपना एक आर्थिक सिद्धान्त भी है । समाजवाद के राजनीतिक और आर्थिक सिद्धान्त इस प्रकार से मिले हुए है कि वे एक दूसरे से पृथक् नहीं हो सकते । शोषण-मुक्त समाज : “समाजवाद उस टोपी के समान है जिसका आकार समाप्त हो गया है, क्योंकि सभी लोग उसे पहनते है ।" समाजवाद के सम्बन्ध में भारत के महान् चिन्तक आचार्य नरेन्द्र देव ने कहा है- “शोषण-मुक्त समाज की रचना करके वर्तमान समाज की प्रचलित दासता, विषमता और असहिष्णुता को सदा के लिए दूर करके, समाजवाद स्वतन्त्रता, समता और भ्रातृत्व की वास्तविक स्थापना करना चाहता है ।" परन्तु याद रखिए, 276
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy