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________________ | मत-भेद खड़ा हो गया है, परन्तु यह बात व्यक्ति आते है | सब मानते हैं कि व्यक्ति और समाज में और चले जाते हैं, | किसी भी प्रकार का अलगाव और विलगाव समाज सदैव रहता | करना न समाज के हित में है और न स्वयं है, समाज ही व्यक्ति व्यक्ति के हित में है। वास्तव में समाज की को सुसंस्कृत एवं कल्पना व्यक्ति के पहले आती है । क्योंकि सुसभ्य बनाता है। । व्यक्ति कहते ही हमें यह परिज्ञान हो जाता है _____ कि यह अवश्य किसी भी समूह एवं समुदाय से सम्बद्ध होगा । व्यक्ति आते हैं और चले जाते हैं, समाज सदैव रहता है। उसका जीवन व्यक्ति से बहुत अधिक दीर्घकालीन रहता है। समाज ही व्यक्ति को सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनाता है। एक बालक का व्यक्तित्व बहुत कुछ उसके सामाजिक वातावरण पर निर्भर रहता है, वह प्रत्येक बात, फिर भले ही वह अच्छी हो अथवा बुरी, अपने समाज से ही सीखता है। केवल सीखने की शक्ति उसकी अपनी होती है । समाज में ही उसके अहं का विकास होता है, जिससे वह मनुष्य कहलाता है । समाज का एक अपना निजी संगठन है, वह व्यक्ति पर बहुत तरह से नियंत्रण रखता है । उसका अपना निजी अस्तित्व और आकार है । परन्तु दूसरी ओर यह भी सत्य है कि व्यक्तियों की अनुपस्थिति में समाज का कोई अस्तित्व नहीं रहता। क्योंकि व्यक्तियों से ही समाज बनता है । व्यक्ति समाज को प्रभावित करता है । इस प्रकार समाज और व्यक्ति दो स्वतंत्र प्रतीत होते हुए भी, दोनों का अस्तित्व और विकास एक दूसरे पर निर्भर रहता है, न व्यक्ति समाज को छोड़ सकता है और न समाज व्यक्ति को छोड़ सकता है । "समाज को समझना उतना अधिक दुस्साध्य कार्य नहीं है, 257
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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