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समाजवाद:
किसी राष्ट्र का मूल्य उसके व्यक्तियों का मूल्य है, जिनसे वह बना है । यही बात समाज के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है, किसी भी समाज का मूल्य उसके व्यक्तियों का मूल्य है, जिससे वह बना है । यही बात परिवार के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है । व्यक्ति भले ही अपने आप में हो, किन्तु परिवार की दृष्टि से वह एक होकर भी वस्तुतः अनेक होता है । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि अपने आश्रयी समाज का एक आश्रय है, तब उसका अलग अस्तित्व किस आधार पर संभव हो सकता है । वही आधार है, व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व । प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक व्यक्तित्व होता है, जिसके आधार पर वह अनेक में रहकर भी एक होता है । व्यक्ति का व्यक्तित्व पुष्प के सुगंध के समान होता है । जिस प्रकार देखने वाले को फूल ही दिखलाई पड़ता है । उसकी सुगंध दृष्टि-गोचर नहीं होती है । परन्तु प्रत्येक पुष्प की सुगंध की अनुभूति अवश्य ही होती है। इसी प्रकार हमें प्रतीति होती
है- व्यक्ति की । जहाँ व्यक्ति है, वहाँ उसका 6 व्यक्ति का व्यक्तित्व
व्यक्तित्व फूल की सुगंध के समान सदा उसमें पुष्प के सुगंध के
रहता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के सम्बन्ध समान होता है। ।
| में बहुत कहा जा सकता है, किन्तु यहाँ पर केवल इतना ही समझना है कि व्यक्ति और
समाज दोनों अलग-अलग नहीं रह सकते । व्यक्ति और समाज :
समाज और व्यक्ति का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । आजकल विभिन्न विचारकों में व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध को लेकर बड़ा
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