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________________ प्राणी पैदा हो जाते हैं । वर्षाकाल में जो नमी और सीलन रहती है, उससे जीवों की उत्पत्ति में अभिवृद्धि हो जाती है । काले-कजरारे बादलों से आकाश घिरा रहता है, जिससे कि सब ओर अंधकार सा छाया रहता है । वर्षाकाल में घर में बहुत-सा कूड़ा-कचरा भी इकट्ठा हो जाता है। अतः घर की स्वच्छता और उज्ज्वलता नष्ट हो जाती है और हमारे चारों ओर एक गन्दा वातावरण फैल जाता है । निरन्तर वर्षा होते रहने के कारण बाहर में कीचड़ और अन्दर में गन्दगी फैल जाती है तथा लगातार आकाश मेघाच्छन्न होने के कारण असंख्य तारकों की नयनाभिराम झिलमिल ज्योति भी दृष्टिगोचर नहीं होती । इस कीचड़, गन्दगी और अन्धकार से मानव मन ऊब-सा जाता है । वर्षाकाल की समाप्ति पर जब आकाश स्वच्छ हो जाता है और बाहर का कीचड़ सूख जाता है, तब घर के अन्दर की गन्दगी को भी बाहर निकालने का प्रयत्न किया जाता है। शारदी पूर्णिमा के उजियाले में जब हम अनन्त नील गगन में असंख्य तारों को जगमग करते देखते हैं और चन्द्र ज्योत्स्ना से समग्र विश्व को दुग्ध-स्नान जैसे उज्ज्वल रूप में देखते हैं, तब मानव-मन उल्लास और आनन्द से भर जाता है । शरद पूर्णिमा से ही लोग अपने घरों की सफाई और पुताई शुरू कर देते हैं और तब यह समझा जाता है कि अब दीपावली पर्व निकट है और उसकी आराधना के लिए तैयारी होने लगती है । इस समय मनुष्य अपने घर और बाहर सबको. स्वच्छ और पावन बनाने का प्रयत्न करने लगता है । मनुष्य का उदास मन प्रसन्न हो उठता है, जब कि वह अपने घर के आंगन में दीपकों की माला को जगमग-जगमग करते देखता है । दीपकों की उस ज्योतिर्मय माला से उसके घर का अन्धकार ही दूर नहीं होता, बल्कि प्रांगण का अंधकार भी दूर भाग जाता है । इस पर्व के दिन अन्दर और बाहर प्रकाश छा जाता है । इसी आधार पर इसको प्रकाश पर्व कहा जाता है। अंधकार मानव 243
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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