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नहीं है। हम स्वयं हँसे और दूसरे को हँसाएँ, जीवन में विनोद | यह तो ठीक है, पर हम दूसरों के साथ ऐसा अवश्य होना चाहिए, मजाक करें, जो हमारी मूल संस्कृति और मूल पर किसी प्रकार का | परम्परा के विरुद्ध हो, उसका तो परित्याग विरोध नहीं। करना ही आवश्यक है । जीवन में विनोद
अवश्य होना चाहिए, पर किसी प्रकार का
विरोध नहीं । पर्व हम आज भी मनाते हैं, किन्तु आज हम केवल उसके शरीर की आराधना करते हैं, उसकी मूल आत्मा को आज हम भूल चुके हैं । आवश्यकता इस बात की है कि हम पर्व के शरीर को नहीं, उसकी मूल आत्मा को पकड़ने का प्रयत्न करें, तभी सच्चे अर्थों में जन-जीवन में उल्लास और आनन्द प्रकट हो सकेगा । होली के पर्व की सार्थकता इसी में है कि हम सब मिलजुलकर आनन्द और उल्लास प्राप्त कर सकें । अहिंसा और दीपावली:
___ दीपावली पर्व भी भारत का एक प्रसिद्ध पर्व है । होलिका के समान दीपावली पर्व भी हमारा एक सामाजिक एवं राष्ट्रीय पर्व है । क्योंकि दीपावली पर्व को भी समाज के सभी व्यक्ति बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं । दीपावली पर्व को मनाने वाले व्यक्तियों में, किसी भी प्रकार का वर्ग-भेद और वर्ण-भेद नहीं माना जाता । “दीपावली पर्व को मनाने में हमारा मूल उद्देश्य क्या है ?" यह बहुत ही सुन्दर प्रश्न है, जो मुझसे पूछा गया है । प्रत्येक पर्व का जब विश्लेषण किया जाता है तो उसका मूल स्वरूप उसमें से ही निकल आता है । दीपावली पर्व की पृष्ठभूमि को समझने के लिए, हमें प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी इस पर विचार करना चाहिए । बात यह है कि वर्षाकाल में अनेक प्रकार के विषैले
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