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________________ कोई भी संसारी व्यक्ति यों ही सहसा अपने अधिकारों का, अपनी प्रिय वस्तु का त्याग कैसे कर सकता है ? कोई लाखों वर्षों में एक-आध भीष्म या राम ही ऐसा अवतरित होता है, जो दूसरों के सुख के लिए अपना साम्राज्य, अपना सर्वस्व बलिदान कर डालता है । राजकुमार सम्राट् कोणिक की यह अनुचित मांग सुनकर स्तब्ध रह गया । यहाँ रहने में कुशल नहीं है- यह सोचकर चुपचाप नाना की शरण में वैशाली चला गया । कोणिक ने चेटक के पास दूत भेजकर राजकुमार, हार तथा हाथी को लौटा देने का प्रस्ताव भेजा । चेटक राजा कोणिक के इस अन्याय युक्त प्रस्ताव का प्रतिवाद करने को तैयार हो गया । उसने कहलाया- इतने विशाल साम्राज्य से तुम्हारी आकांक्षा भरी नहीं, जो तुम अपने भाई का अधिकार भी हड़पने की दुश्चेष्टा कर रहे हो, यह अन्याय है । वैशाली का गणतंत्र सदा न्याय का पक्ष लेता रहा है । यह शरणागत रक्षक है । अतः यह स्वप्न में भी शरण में आये हुए को लौटाना नहीं जानता । बस फिर क्या था ? दोनों तरफ युद्ध की रणभेरियां बज उठीं, कोणिक युद्ध के मैदान में कूद पड़ा । उधर चेटक भी काशी - कौशल के अठारह गण राजाओं के साथ युद्ध भूमि में आ डटा । चेटक अहिंसा प्रेमी श्रावक था, वह युद्ध - प्रिय नहीं था । किन्तु जब कर्तव्य का प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ तो उसे युद्ध की चुनौती स्वीकार करनी पड़ी । अन्याय को सहन करना भी तो अन्याय है । उसका क्षात्र तेज इस प्रकार के अन्याय को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता 219 कि अन्याय को सहन करना भी तो अन्याय है । स धर्म युद्ध का अर्थ है- कर्तव्यवश युद्ध करना । किसी
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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