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________________ नहीं हुआ और दौड़ा सीता की ओर । सीता तो नहीं मिली, अपितु उसका सर्वनाश अवश्य हो गया । भगवान् महावीर के समय में एक सम्राट् हुआ है- कोणिक । राजा श्रेणिक का पुत्र था, वह । वैशाली गणतन्त्र के अध्यक्ष राजा चेटक का दोहिता । वह भगवान् महावीर का भक्त भी था । जैन इतिहास में वर्णन आता है कि उसने अपने राज्य में इस प्रकार का एक विभाग खोला था, जिसमें बड़े-बड़े वेतनधारी पुरुष नियुक्त किए गए थे। वे भगवान् महावीर का प्रतिदिन का सुख-संवाद प्रातःकाल तक सम्राट के पास पहुँचाते थे । जब तक भगवान् का समाचार नहीं मिल जाता था, तब तक वह अन्न-जल नहीं लेता था । इतना बड़ा श्रद्धालु और भक्त होते हुए भी वह एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी सम्राट् था । प्रारम्भ से ही वह एक विलासी एवं उद्दण्ड प्रकृति का युवक था । उसका एक छोटा भाई था । एक दिन उसकी महारानी पद्मावती का मन ललचा जाता है, देवर के सेचनक हाथी और हार के ऊपर । वह सम्राट् से आग्रह कर बैठती है कि जब तक यह हाथी और हार हमें प्राप्त नहीं होता है, तब तक यह विशाल साम्राज्य बेकार है । यह विशाल वैभव व्यर्थ है । पत्नी के आग्रह और मोह के सामने वह अपना कर्तव्य तथा नीति भूल गया । मोह का उदय होने से विवेक नष्ट हो ही संसार में जितने भी जाता है। संसार में जितने भी अनर्थ हुए हैं, अनर्थ हुए हैं, होते होते हैं और होंगे उन सब के मूल में आग्रह हैं और होंगे, उन और मोह रहता है । कोणिक ने भी बिना सब के मूल में आग्रह और मोह कुछ इधर-उधर सोचे भाई से हार तथा हाथी की मांग कर दी। हालाँकि यह एक अनुचित रहता है। बात थी। 218
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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