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________________ आज समूचा संसार इसी मूर्खता की धारा में शरीर का ज़ख्म बह रहा है । शरीर का ज़ख्म तो एक-दो तो एक-दो महीने में महीने में भर भी जाता है, परन्तु इच्छाओं के भर भी जाता है. | चाकू का घाव तो जन्म-जन्मान्तर तक नहीं परन्तु इच्छाओं के भर पाता और यूं ही ज़ख्मी मन लेकर दौड़ चाकू का घाव तो चलती रहती है । दिन-रात मन चिन्ताओं से जन्म-जन्मान्तर तक व्याकुल, संघर्षों से परेशान और हाय-हाय नहीं भर पाता। करता रहता है। इतनी चिन्ता और व्याकुलताओं के बाद इच्छाओं की पूर्ति के रूप में यदि घाव कभी भर भी गया, तो क्या लाभ हुआ ? इच्छाओं की उत्पत्ति से पूर्व जो इच्छाओं की अभावात्मक स्थिति थी, उसे अनेक संकटपूर्ण स्थितियों के बाद इच्छाओं की पूर्ति होने पर पुनः प्राप्त करना और इच्छा के पूर्ति-जन्य अभाव में आनन्द मनाना, चाकू मारकर पहले ज़ख्म बनाना है। और पुनः चिकित्साओं के द्वारा उसे अच्छा करके आनन्द मनाना है । यह तो द्रविड़-प्राणायाम करने जैसी ही बात को चरितार्थ करता है । उक्त विवेचन से यही निष्कर्ष निकलता है कि जब इच्छाओं के अभाव में ही आनन्द है तो इच्छाओं को पैदा ही क्यों किया जाय ? अधूरी इच्छाएँ: शास्त्रकारों का कहना है कि यदि मन की तरंगों और इच्छाओं का ठीक से विश्लेषण करें, तो यह निष्कर्ष निकलेगा कि लोगों को अनेक निरर्थक और क्षुद्र इच्छाएँ तंग करती रहती हैं। यदि इच्छाओं की शान्ति इच्छाओं की पूर्ति के द्वारा करना चाहें, तो कुछेक इच्छाओं की ही पूर्ति हो सकती है, अधिकांश इच्छाओं की पूर्ति तो कभी हो ही नहीं पाती । 182
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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