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________________ या व्यक्ति विशेष की वकालत करना भी नहीं हैं, करनी है तो सिर्फ सिद्धान्त की वकालत करनी है । तो, साधु के पास वस्तुएँ होने पर भी वह अपरिग्रही है । आपके पास लड़का है तो वह परिग्रह है; किन्तु साधु के पास शिष्य है, तो वह परिग्रह नहीं है । भगवान् महावीर के पास चौदह हजार साधुओं और छत्तीस हजार साध्वियों का परिवार था; किन्तु वह वृहत् परिवार, परिग्रह नहीं कहलाया और आपके पास दो तीन पुत्र हो गए तो वह परिग्रह का बढ़ना कहलाता है। हमें इसी मुद्दे पर विचार करना है । आखिर बात क्या है ? आपकी जात-पांत हैं, वह परिग्रह है और हमारे गच्छ हैं, सम्प्रदायें हैं, किन्तु वह परिग्रह नहीं है । अर्थ यह निकला कि वस्तु हो या न हो यह मुख्य बात नहीं है, मुख्य तो ममता और आसक्ति का होना और न होना ही है। उपकरण, शिष्य और गच्छ होने पर भी साधु केवल ममत्व के अभाव के कारण अपरिग्रही होता है । यदि किसी साधु में इनके प्रति ममता है, आसक्ति है, तो फिर वह अपरिग्रही नहीं कहला सकता, चाहे उसका वेष कुछ भी क्यों न हो। किसी के पास वस्तु नहीं है, किन्तु वस्तु की इच्छा है, लालसा है और उसको प्राप्त करने के लिए गम्भीर भाव से तमन्नाएँ जाग रही हैं, तो समझ लीजिए कि वह परिग्रह के दल-दल में फँसा हुआ है। परिग्रह-विमुक्त नहीं है। एक बार हम एक गाँव में पहुंचे। वहाँ हमारे प्रति कोई श्रद्धालु नहीं था । अतएव हमें ठहरने के लिए गाँव में कोई जगह नहीं मिली । 157
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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