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________________ जहाँ इच्छा है, वहाँ परिग्रह है और जहाँ इच्छा का त्याग है, वहाँ परिग्रह का भी त्याग है। कल एक प्रश्न उपस्थित किया गया था । भिक्षु ज्ञान प्राप्ति के लिए पुस्तकें रखता है, भिक्षा के लिए पात्र रखता है और पात्र में आहार-पानी इकट्ठा कर लेता है; परिवार के रूप में शिष्य रख लेता है और जीवन के साधन- वस्त्र, ओघा, पूँजनी आदि उपकरण भी रखता है। इनमें से कुछ चीजें धर्म के लिए और कुछ जिन्दगी के लिए आवश्यक हैं । अब प्रश्न यह है कि इन सब चीजों के रहते हुए भिक्षु परिग्रही है या नहीं ? यदि वस्तु को परिग्रह मान लेंगे, तो भिक्षु को परिग्रही मानना पड़ेगा और परिग्रही माने बिना बच नहीं सकते है । __ हमें सिद्धान्त के रूप में और विवेक पूर्वक विचार करना है; सम्प्रदाय के दृष्टिकोण से विचार नहीं करना है । अगर सम्प्रदाय के दृष्टिकोण से विचार करेंगे, तो बड़ी गलतफहमी में पड़ जाएँगे । अगर आपकी मान्यता के पीछे कोई सुदृढ़ आधार नहीं है, कोई तर्क और युक्ति नहीं है तो आप भले ही उसे मानते रहें, संसार मानने को तैयार नहीं होगा । __ हाँ, तो साधु वस्तु रखता है, किन्तु परिग्रही नहीं है, ऐसी हमारी मान्यता है और संसार भर के सभी दर्शनों के साधुओं के विषय में उन-उन दर्शनों की ऐसी ही मान्यता है । इसका अर्थ यह है कि साधु वस्तुएँ तो रखता है किन्तु परिग्रह नहीं रखता है। यह बात मैं उन साधुओं के विषय में कह रहा हूँ, जो वास्तव में साधु हैं और जो अपने धर्म के अनुसार चल रहे हैं । मैं केवल नामधारी साधुओं की वकालत नहीं कर रहा हूँ । हमें किसी वर्ग-विशेष ___ 156
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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