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________________ भगवान् ने आनन्द से यह नहीं कहा कि इच्छा-योग ही इसमें से जरा कम करो । खाने-पीने की सहज धर्म है। चीजें हैं तो क्या, गायें हैं तो क्या और 6 नकद-नारायण हैं तो क्या, आनन्द के दबाव का धर्म से । पास जो कुछ भी था, वह सब उसने रख कोई सम्बन्ध नहीं | लिया । भगवान् ने उसमें से कम करने के है। दबाव भी लिए आनन्द पर तनिक भी दबाव नहीं हिंसा है। डाला । क्योंकि इच्छा-योग ही सहज धर्म है। मैं समझता हूँ, धर्म के लिए कोई दबाव डालने की आवश्यकता नहीं हैं। कौन आदमी कितना दान करता है या तपस्या करता है या दूसरी साधनाएँ करता है, यह उसकी इच्छा पर निर्भर होना चाहिए। वह जिस रूप में तैयारी करके आया है, उतनी ही सिद्धि जागेगी । तुम्हारे अन्दर शक्ति है तुम उसके मन को बदल सकते हो उसका विकास कर सकते हो, और यह सब उपदेश के रूप में ही कर सकते हो, दबाव से नहीं । दबाव का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है । दबाव भी हिंसा है। जब से दबाव के साथ धर्म का सम्बन्ध जोड़ा गया है, लोगों के दिलों में धर्म के प्रति आस्था कम हो गई है । धर्म भी प्रकाश-हीन-सा हो गया है । तभी से इन्सान उसको वजन के रूप में ढ़ोता है । और वजन के रूप में ढ़ोता है, तो धर्म बोझिल हो जाता है। धर्म सहज नहीं रहता । जो धर्म बिना मन के किया जाता है, लज्जा तथा दबाव के 152
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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