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________________ देखना होगा कि जो धन रख लिया गया है, वह धनी के ऊपर सवार है या धनी धन के ऊपर सवार है ? गाड़ी या घोड़ा जो आपने रख छोड़ा है, वह आपकी सवारी के लिए है, अपने ऊपर सवार करने के लिए नहीं है, इसी प्रकार धन भी आपके ऊपर सवार होने के लिए नहीं होना चाहिए । जब तक आपके पास धन-सम्पत्ति है, आपको उस पर सवार होकर जीवन की यात्रा तय करनी है, यह नहीं कि उसे अपने ऊपर सवार करके चलना है। मतलब यह है कि यदि बुद्धि जागृत हो गई है, शुभ-संकल्प और पवित्र भावना जाग गई है, तो परिग्रह के द्वारा भी सुन्दर भविष्य का निर्माण किया जा सकता है । अगर आपने ऐसा किया, तो इसका अर्थ यह है कि आप धन पर सवार हैं, धन आप पर सवार नहीं है । परिग्रह को रखे रहना, उससे चिपटे रहना, न खुद खाना और न किसी शुभ कार्य में खर्च करना, यह मूर्छा का लक्षण है, आसक्ति है और यही संसार-परिभ्रमण की जड़ है ।। एक व्यक्ति ऐसा है, जिसके पास वस्तु थोड़ी है, फिर भी समय आने पर वह उसका उपयोग करने से नहीं चूकता, तो चाहे वह वस्तु कौड़ी की हो या लाख की, अपरिग्रह ही है । कोई साधु हो या गृहस्थ हो, आवश्यकता दोनों को रहती है । ऐसा तो नहीं है कि मेरे शरीर का वस्त्र देवता द्वारा बनाया हुआ है और आपके वस्त्र जुलाहे ने बनाए हों । कपड़ा तो जुलाहा बुनता है और क्या साधु का और क्या श्रावक का, कपड़ा तो कपड़ा ही है । फिर यह कैसे हो सकता है कि गृहस्थ के पास रखा हुआ कपड़ा तो परिग्रह हो जाए और साधु के पास रखा हुआ कपड़ा परिग्रह न हो ? साधु परिग्रह 136
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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