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बहन की रक्षा के निमित्त परिमाण से बाहर की भूमि पर जाए या नहीं ?
और, यह प्रश्न आज का नहीं है । पुराने जमाने में भी यह सवाल उठा था कि ऐसे प्रसंग पर वह आगे जाए या वहीं खड़ा-खड़ा देखा करे और उसकी आँखों के सामने सारी गड़बड़ होती रहे । उस विषम स्थिति में वह क्या करे ?
इस प्रसंग पर एक सिपाही की बात याद आ जाती है। सिपाही किसी बंगले के बाहर पहरा दे रहा था । बंगले के दरवाजे पर लिखा था 'बिना इजाजत अन्दर मत आओ' । अचानक चोरों ने प्रवेश किया और वे चारदीवारी के अन्दर घुस गए । यह देखकर सिपाही उनके पीछे दौड़ा । तब तक चोर कमरे के अन्दर घुस गए । सिपाही द्वार पर पहुँचा तो उसकी दृष्टि साइन बोर्ड पर पड़ी । लिखा था- 'बिना इजाजत अन्दर मत आओ' । यह देखकर सिपाही बाहर ही खड़ा रह गया। चोर सामान समेट कर रफूचक्कर हो गए ।
शास्त्रों में दिशा-परिमाण का जो विधान किया गया है, वह विधान इस प्रकार का रूप ग्रहण न कर ले और अर्थ का अनर्थ न हो जाए, इस हेतु हमारे भाष्यकारों ने विचार किया है और स्पष्ट रूप में कहा है कि दिशा-परिमाण व्रत का उद्देश्य यही है कि तुम किसी वासना की पूर्ति के लिए आगे नहीं जा सकते हो । पाँच आस्रवों के सेवन के लिए आगे जाने का तुम्हारे लिए निषेध है। यदि किसी की रक्षा का प्रश्न है या और कोई समस्या है, तो जनकल्याण के लिए दिशा-परिमाण व्रत बाधक नहीं बनता । जन-कल्याण के लिए पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक भी जा सकते हो ।
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