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इस प्रकार आवश्यकताओं का पता जो अपनी लगाकर शोषण बन्द कर देना चाहिए । जो आवश्यकताओं पर | मनुष्य इस तरीके से चलता है, उसी का विचार नहीं करता, जीवन कल्याणमय बन सकता है, और वही
उन्हें निर्धारित नहीं जीवन का वास्तविक लाभ उठा सकता है । करता, आँखें मींच कर इसके विपरीत, जो अपनी आवश्यकताओं उनकी पूर्ति करने में ही पर विचार नहीं करता, उन्हें निर्धारित नहीं
जुटा रहता है, वह करता, आँखें मींच कर उनकी पूर्ति करने में अपना समूचा जीवन | | ही जुटा रहता है, वह अपना समूचा जीवन बर्बाद कर देता है। | बर्बाद कर देता है और उसके हाथ कुछ भी
नहीं आता । अन्त में वह शून्यता का भागी
होकर पश्चाताप करता है । उसे जीवन का रस नहीं मिल पाता ।
अपनी वास्तविक आवश्यकताओं को समझ लेने और उनसे अधिक संग्रह न करने से ही संसार के संघर्ष समाप्त हो सकते हैं । हमारे देश में आज जो संघर्ष चल रहे हैं, उन्हें शान्त करने का यह सर्वोपरि उपाय है- इच्छाओं का परित्याग कर देना अथवा उन्हें सीमित कर
देना ।
एक आदमी कपड़े की दुकान करता है । ज्यों ही उसके पास प्रचुर पैसा जुड़ जाता है, तो उसे किसी तरह काम में लगाने की फिकर करता है और उस पैसे से और अधिक पैसा पाने की सोचता है । इस रूप में वह सर्राफ की या अनाज की दूसरी दुकान खोल लेता है, और तब और भी अधिक पैसा इकट्ठा हो जाता है । उसको भी वह उपार्जन में लगाने की फिकर करता है, क्योंकि पैसा निठल्ला नहीं बैठ सकता,
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