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जीवन आदर्श - विहीन होकर भारभूत बन जाता है । यह भी इकट्ठा किया, वह भी इकट्ठा किया और सारी जिन्दगी इकट्ठा करने में ही समाप्त कर दी, तो इकट्ठा करने का प्रयोजन क्या हुआ ? वह इकट्ठा करना जीवन के किस काम आया ? उसने जीवन को कितना आगे बढ़ाया ?
ऐसा संग्रह - परायण मनुष्य जब एक जीवन को त्याग कर दूसरे जीवन के लिए यात्रा करने की तैयारी करता है तब उसका मन अत्यन्त व्यथित होता है ।
महमूद गजनवी वगैरह भारत में आए और लूट लूट कर चले गए। उन्होंने सोने के पहाड़ और हीरे-जवाहरात के ढेर लगा लिए, मगर उनका उपयोग न कर सके । जब उनके मरने का समय निकट आया तो बोले- वे ढ़ेर हमारे सामने लाओ । जब ढ़ेर सामने आए तब उस समय अपने जीवन का महत्वपूर्ण प्रश्न उनके सामने आया कि ये ढ़ेर क्यों किए ? ये ढ़ेर हमारे क्या काम आए ? बस, यही जीवन का महत्वपूर्ण प्रश्न है । और जिसके जीवन में जितना जल्दी यह प्रश्न उपस्थित हो जाता है, वह उतना ही बड़ा भाग्यशाली है ।
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जब मनुष्य संसार में संग्रह करने के लिए दौड़ लगाता है; तब अपने राष्ट्र, समाज और परिवार को भूल
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कभी-कभी अपने
आपको भी भूल जाता है /
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लिए दौड़ लगाता है; तब अपने राष्ट्र, जब मनुष्य संसार में संग्रह करने के समाज और परिवार को भूल जाता है और कभी-कभी अपने आपको भी भूल जाता है । उसे खाने की आवश्यकता है, परन्तु खाता नहीं, विश्रान्ति की आवश्यकता है; किन्तु विश्रान्ति नहीं लेता । बस कमाना,
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